गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार शामिल होगी प्रलय मिसाइल, जानिए इसकी खासियत…
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड में प्रलय मिसाइल पहली बार दिखाई जाएगी। रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा कि नवविकसित सामरिक मिसाइल प्रलय परंपरागत हथियार ले जाने में सक्षम है। यह उन स्वदेशी हथियार प्रणालियों में शामिल है जिन्हें गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ पर प्रदर्शित किया जाएगा। इस तरह यह पहला मौका होगा जब गणतंत्र दिवस परेड में प्रलय मिसाइल को शामिल किया जाएगा। निश्चित तौर पर इससे दर्शकों का रोमांच और उत्साह और ज्यादा बढ़ जाएगा।
प्रलय मिसाइस को अपनी सटीकता के लिए जाना जाता है। साथ ही, यह दुश्मन के इलाके में अंदर तक घुसकर हमला करने में सक्षम है। प्रलय का गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होना स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती ताकत को दिखाता है। प्रदर्शन में शामिल अन्य प्रमुख हथियारों में ब्रह्मोस मिसाइल, मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर, टी -90 टैंक और नाग मिसाइलें हैं। यह भारत की मजबूत सैन्य शक्ति का नमूना पेश करेगा। इस साल की गणतंत्र दिवस परेड में न केवल सैन्य ताकत पर जोर होगा बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी जश्न मनाया जाएगा। भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के प्रतीक के तौर पर 2 खास झांकियां निकाली जाएंगी।
500-1000 किलोग्राम भार ले जाने की क्षमता
रक्षा सचिव ने बताया कि लगभग 90 मिनट की परेड में 31 झांकियां शामिल होंगी, जिनमें 16 राज्यों की और 15 केंद्रीय मंत्रालयों की होंगी। सिंह ने कहा कि परेड में प्रलय मिसाइल के साथ-साथ अन्य स्वदेशी रूप से विकसित प्लेटफॉर्म भी प्रदर्शित किए जाएंगे। प्रलय छोटी दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल है, जिसकी भार ले जाने की क्षमता 500-1,000 किलोग्राम है। यह मिसाइल पारंपरिक हथियार ले जाने में सक्षम है। इसकी मारक क्षमता 150 से 500 किलोमीटर है।
हेलीकॉप्टर ध्रुव परेड का नहीं होगा हिस्सा
राजेश कुमार ने कहा कि स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित उन्नत हल्का हेलीकॉप्टर (ALH) ध्रुव 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा नहीं होगा। उन्होंने हेलीकॉप्टरों के इस्तेमाल पर रोक को थोड़ी झटके वाली बात बताया। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि जल्दी ही हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। इस महीने एक एएलएच के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद सशस्त्र बलों ने इन हेलीकॉप्टर के उड़ान भरने पर रोक लगा दी थी। सेना, भारतीय वायु सेना, नौसेना और तटरक्षक बल लगभग 330 एएचएल का इस्तेमाल कर रहे हैं।