SC ने भूमि अधिग्रहण के तरीके पर जताई नाराजगी, कर्नाटक सरकार को दिया ये आदेश

सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण के बाद कई सालों तक मुआवजा नहीं देने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी सरकार ऐसा नहीं कर सकती कि वो मुआवजा रोक ले। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से कहा कि वह 1986 में अधिग्रहित की गई भूमि का वर्तमान बाजार मूल्य पर भुगतान करे, बिना किसी मोल भाव के। 

विजयनगर लेआउट के लिए हुआ था अधिग्रहण

दरअसल, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद संजय एम नूली की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। नूली भूमि मालिक जयलक्ष्मम्मा और अन्य की ओर से पेश हुए थे। इन जमीनों की करीब दो एकड़ भूमि विजयनगर लेआउट के निर्माण के लिए मैसूर के हिंकल गांव में अधिग्रहित की गई भूमि का बड़ा हिस्सा है। 

1984 में जारी हुई थी अधिसूचना

  • अंतिम अधिग्रहण अधिसूचना मार्च 1984 और अवार्ड 1986 में जारी हुआ था। नूली ने कहा कि अंतिम अधिसूचना जारी करने के बावजूद, प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं को अंधेरे में रखा।
  • वकील ने कहा कि न तो जमीन पर कब्जा किया और न ही मुआवजा जमा किया या भुगतान किया। जमीन, सभी स्थायी संरचनाओं के साथ, आज तक याचिकाकर्ताओं के कब्जे में है और वे उक्त संपत्तियों के संबंध में कर, बिजली बिल का भुगतान कर रहे हैं।

कर्नाटक सरकार से जताई नाराजगी

पीठ ने कहा कि 21 अप्रैल 1986 को जारी अवार्ड कर्नाटक सरकार को उचित और न्यायसंगत मुआवजा देने से मुक्त नहीं करता है। मुआवजा देने से इनकार करना अनुच्छेद 300 ए (संपत्ति के अधिकार) का उल्लंघन है। अधिकारी 33 साल से अधिक समय तक मुआवजे का भुगतान रोके रखने का कोई भी कारण तथ्यात्मक या कानूनी रूप से बताने से पूरी तरह विफल रहे हैं।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि विजयनगर की स्थापना के लिए विशाल भूमि के बीच से जमीन का एक छोटा टुकड़ा अलग करना न तो बुनियादी सुविधाओं के विकास के हित में होगा और न ही भूमि मालिक के हित में। 

कोर्ट ने दिया ये आदेश

पीठ ने विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी को 1 जून 2019 तक भूमि का बाजार मूल्य निर्धारित करने और भूमि के बाजार मूल्य के निर्धारण के चार सप्ताह के भीतर संदर्भ न्यायालय में जमा करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने इसी का साथ भूमि मालिक को मुआवजा राशि प्राप्त करने के बाद अधिकारियों को बिना किसी बाधा के भूमि का कब्ज़ा देने को कहा। 

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