भगवान विष्णु शयनकाल के दौरान बदलते हैं करवट, इसलिए नाम पड़ा परिवर्तिनी एकादशी
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी बनाई जाती है। इसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु निद्रा के दौरान करवट बदलते हैं। यही कारण है कि इसका नाम परिवर्तिनी एकादशी पड़ा है।
परिवर्तिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 13 सितंबर रात 10 बजकर 30 मिनट पर शुरू होकर 14 सितंबर रात 8 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। इस तरह एकादशी व्रत 14 सितंबर, शनिवार को रखा जा रहा है।
परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि
- इस दिन सूर्योदय से पूर्व जागें और स्नान करने के बाद सर्वप्रथम सूर्य देवता को अर्घ्य दें।
- इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान गणेश और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करे।
- मान्यता है कि श्री हरि को पीले फूल प्रिय हैं। साथ ही पंचामृत और तुलसी दल भी अर्पित करें।
- गणेश जी को मोदक और दूर्वा अर्पित करें। गणेशोत्सव के दौरान इस एकादशी का विशेष महत्व है।
- इस दौरान गणेश जी और फिर श्री हरि के मंत्रों का जाप करें। इसके बाद निर्धन को दान करें।
परिवर्तिनी एकादशी की व्रत कथा
यह कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। कथा के अनुसार, त्रेतायुग में असुरराज बलि नामक राक्षस था। यूं तो उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था, लेकिन वो भगवान का भक्त था।
भगवान में आस्था रखता था। नित्य पूजा करता था। यज्ञ-हवन में शामिल होता था। ब्राह्मणों को दान करता था। आगे चलकर असुरराज बलि को अपनी शक्ति का अहंकार हो गया। उसे इंद्रलोक पर हमला कर दिया।
इंद्र समेत सभी देवताओं को इंद्रलोक छोड़कर भागना पड़ा। सभी देवता बैकुंठ धाम पहुंचे जहां भगवान विष्णु निद्रा में थे। देवताओं की स्तुति से भगवान विष्णु की निद्रा भंग हो गई और उन्होंने करवट बदली।
इसके बाद देवताओं से कहा कि वे चिंता न करें। उनकी समस्या का शीघ्र समाधान हो जाएगा। इसके बाद भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और असुरराज बलि के पास पहुंचे।
असुरराज बलि दानी था, तो भगवान ने उससे तीन पग भूमि दान में मांगी और उसने दे दी। भगवान विष्णु ने विराट अवतार धारण किया और एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग को माप लिया। तीसरे पग के लिए बलि से स्थान मांगा, तो उसने अपना सिर आगे कर दिया। जैसे ही भगवान ने उसके सिर पर पैर रखा, वह पाताललोक में चला गया।
परिवर्तिनी एकादशी पर करें ये उपाय
- केसर युक्त दूध से श्री हरि का अभिषेक करें
- पीले वस्त्रों का दान करें
- चांदी के सिक्कों का दान करें