उत्तराखंड लोकसभा चुनाव 2004 में प्रचार के पुराने तरीके पिछड़े, फेसबुक-इंस्टाग्राम समेत सोशल मीडिया पर दौड़

उत्तराखंड लोकसभा चुनाव 2024 का समर जीतने के लिए दौड़धूप कर रहे प्रत्याशी, सड़क के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी खूब पसीना बहा रहे हैं। हर हाथ तक मोबाइल फोन की पहुंच के चलते वर्तमान में सोशल मीडिया,चुनाव प्रचार का एक बड़ा मंच बन गया है।

इस वक्त विभिन्न सोशल प्लेटफार्म करीब करीब हर सियासी दल के प्रत्याशी की बैठक, सभा, पदयात्रा और जनसंपर्क के फोटो, वीडियो और रील्स से अटा पड़ा है। वर्तमान में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके चलते इन दिनों वास्तविक दुनिया से ज्यादा चुनावी माहौल वर्चुअल वर्ल्ड में नजर आ रहा है।

उत्तराखंड में 19 अप्रैल को मतदान होना है। इस हिसाब से वोटरों को लुभाने के लिए प्रत्याशियों के पास अब केवल 17 दिन ही शेष हैं। मतदान के लिए समय कम होने के बावजूद, उत्तराखंड की सड़कों पर चुनाव प्रचार, बीते चुनावों के मुकाबले कमतर नजर आ रहा है।

शहरों में न तो ज्यादा होर्डिंग-बैनर नजर आ रहे हैं और न ही जगह-जगह पार्टी के झंडों की झालर सजाते कार्यकर्ता दिख रहे हैं। जबकि अब से पहले तक चुनावों के दौरान प्रचार सामग्री से शहरों और गांवों के गली-मोहल्ले होर्डिंग, बैनर व पोस्टर से चुनावी रंग में रंग जाते थे।

वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं का कहना है कि वास्तव में इस बार चुनाव में पहले सा उत्साह दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा। इतना जरूर है कि प्रत्याशी व उनके समर्थक सोशल प्लेटफार्म-व्हाटसऐप, फेसबुक, एक्स आदि पर ग्रुप बनाकर प्रचार सामग्री साझा कर रहे हैं।

हालांकि उनका मानना है कि सोशल मीडिया पर प्रचार अपेक्षित रूप से असरदार नहीं है। जनमत जनता के बीच जाकर ही बनता है। कांग्रेस नेता सुरेंद्र कुमार का कहना है कि निसंदेह सड़कों के साथ सोशल मीडिया पर भी चुनावी माहौल नजर आ रहा है। उनका कहना है कि इसकी अहम वजह भी है।

बकौल सुरेंद्र, आज के दौर में इंटरनेट बेहद रियायती दर पर उपलब्ध है और स्मार्टफोन तक भी लोगों की पहुंच बढ़ी है। वर्तमान में करीब करीब हर महिला, पुरुष, युवा, बुजुर्ग, किशोर के हाथ में मोबाइल फोन है। सोशल मीडिया के जरिए आसानी से एक बड़े वर्ग के साथ सियासी दलों व प्रत्याशियों का संपर्क बन जाता है।

पुराने वीडियो से प्रहार

सोशल मीडिया पर जहां राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के प्रचार के लिए कसर नहीं छोड़ रहे वहीं, विरोधी के लाफ माहौल बनाने को पुराने चर्चित रहे वीडियो, बयान और फोटो का भी इस्तेमाल कम नहीं हो रहा है। इस वक्त सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो एकाएक दिखाई देने लगे हैं, जो काफी पुराने हैं। लेकिन राजनीतिक रूप से लाभ लेने के लिए उन्हें खूब वायरल भी किया जा रहा है।

चुनाव आयोग की सख्ती भी वजह

सड़कों पर चुनाव प्रचार की रौनक फीकी रहने के पीछे चुनाव आयोग की सख्ती भी वजह है। चुनाव में धनबल के दुरुपयोग को रोकने के लिए चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के चुनाव खर्च की सीमा तय कर रखी है। चाय, समोसे तक के खर्च को प्रत्याशी के खाते में जोड़ा जा रहा है। एक पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि पहले हर कॉलोनी-मोहल्लों में छोटी-बड़ी सभाएं होती थीं, तब प्रचार सामग्री भी खूब प्रयोग होती थी।

पर अब चुनाव आयोग की टीमें पैनी निगाह रखती हैं। इस प्रकार छोटे-छोटे खर्च जुड़कर बड़ी रकम बन जाती है। प्रत्याशी इससे भी बचना चाहते हैं। सोशल मीडिया के जरिए सभा, यात्रा आदि को लाइव दिखाना अभी चुनाव खर्च में शामिल नहीं किया गया है।

फेसबुक उम्मीदवारों में त्रिवेंद्र रावत के सर्वाधिक फॉलोअर

उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों की बात करें तो फेसबुक पर सबसे ज्यादा 17 लाख फॉलोअर हरिद्वार से भाजपा प्रत्याशी त्रिवेंद्र रावत के हैं। कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र रावत के 67 हजार फॉलोअर हैं। सबसे कम 2300 फॉलोअर टिहरी से कांग्रेस प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला के हैं। उनकी प्रतिद्वंद्वी भाजपा की माला राज्य लक्ष्मी के 6000 फॉलोअर हैं।

निर्दलीय बॉबी पंवार के 38 हजार फॉलोअर हैं। गढ़वाल से भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी के एक लाख 29 हजार, जबकि कांग्रेस के गणेश गोदियाल के 46 हजार फॉलोअर हैं। अल्मोड़ा से भाजपा प्रत्याशी अजय टम्टा के 63 हजार और कांग्रेस के प्रदीप टम्टा के 10 हजार फॉलोअर हैं। नैनीताल से भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट के एक लाख 19 हजार फॉलोअर हैं, जबकि कांग्रेस के प्रकाश जोशी के 15 हजार फॉलोअर हैं।

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