MP की इस सीट से लगातार 7 चुनाव हारी कांग्रेस, लेकिन इस बार चल दिया भाजपा वाला दांव

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कुल 29 में से 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारा दिया है। वहीं कांग्रेस ने भी 10 सीटों पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। आज हम आपको सतना लोकसभा सीट के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पिछले 23 साल में कांग्रेस 7 लोकसभा चुनाव हार चुकी है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने एक अलग दांव चला है। आइए जानते हैं कैसे…

28 साल से एक ही पैटर्न

सतना लोकसभा सीट से भाजपा पिछले 28 साल से ओबीसी उम्मीदवार को मैदान में उतार रही है। इन सालों में कांग्रेस ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्ग पर भरोसा करती रही। यह प्रयोग विफल रहा तो कांग्रेस ने भी अब ओबीसी प्रत्याशी को समर में उतार दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों ही प्रमुख दलों में कौन बाजी मार ले जाता है।

23 साल में 7 लोकसभा चुनाव में हार

सतना संसदीय सीट पर पिछले सात चुनावों से हार पर हार झेल रही कांग्रेस ने 28 साल बाद ओबीसी चेहरे पर दांव लगाया। दरअसल, 1996 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने तोषण सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था, हालांकि उस समय उन्हें 96 हजारों वोटों से पराजय का सामना करना पड़ा था। उसके बाद से कांग्रेस ने सतना लोकसभा सीट में हर बार सामान्य वर्ग के जनप्रतिनिधि पर ही भरोसा जताया है। कभी क्षत्रिय तो कभी ब्राह्मण, पर पार्टी को सफलता नहीं मिली और सतना में पिछले सात चुनावों से ओबीसी चेहरा ही चुनाव जीत रहा है। ऐसे में कांग्रेस ने भी अब अपने ओबीसी चेहरे पर दांव लगाया है।

इस बार नया दांव

1996 से 2019 तक 23 सालों में हुए सात चुनावों के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवारों की बात की जाए तो इस दौरान पार्टी ने एक-एक बार ओबीसी और ब्राह्मण जनप्रतिनिधि पर भरोसा जताया है। वहीं 1998 से 2014 तक लगातार पांच बार क्षत्रिय वर्ग से आने वाले जनप्रतिनिधियों पर दांव लगाया लेकिन हर बार पार्टी को निराशा ही हाथ लगी है। सतना सीट पर मिल रही हार-दर-हार से परेशान कांग्रेस अपनी साख बचाने के लिए ऐसे उम्मीदवार की तलाश में थी जो उनकी नैया लोकसभा में पार लगा सके। ऐसे में इस बार कांग्रेस ने भाजपा का ओबीसी वाला दांव चला है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस दांव से देश की सबसे पुरानी पार्टी को कोई फायदा मिलता है या नहीं।

साल 1996 और 2009 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग रहा था। इन दोनों चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवारों को चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। कांग्रेस ने 1996 में ‘तिवारी कांग्रेस’ से चुनावी समर में उतरे कुंवर अर्जुन सिंह के खिलाफ उनके ही कट्टर समर्थक तोषण सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था। तोषण सिंह को चुनाव में 71 उम्मीदवारों के बीच चौथा स्थान मिला था और तो और कांग्रेस उम्मीदवार को जितने वोट मिले थे उससे ज्यादा वोटों से पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था। तोषण सिंह को 85 हजार 751वोट मिले थे लेकिन उनके पराजय का अंतर 96 हजार 545 वोट था।

कुछ यही हाल 2009 के लोकसभा चुनाव का था, इस चुनाव में कांग्रेस ने सुधीर सिंह तोमर को अपना उम्मीदवार बनाया था, सुधीर को टिकट दिए जाने से नाराज राजाराम त्रिपाठी ने साइकिल की सवारी कर ली और कांग्रेस को चौथे स्थान पर धकेल दिया। चुनाव में सुधीर सिंह को 21 उम्मीदवारों में चौथा स्थान मिला था। सिंह को भी जितने वोट मिले थे उससे ज्यादा मतों से उन्हे पराजय का सामना करना पड़ा था। सुधीर सिंह को चुनाव में 90 हजार 806 वोट मिले थे और उन्हे 1 लाख 3 हजार 818 मतों से पराजय मिली थी।

1991 में सतना में कांग्रेस का आखिरी सांसद कुंवर अर्जुन सिंह चुने गए थे, इसके बाद से 2019 तक सात चुनाव हो चुके हैं और पार्टी को लगातार पराजय का सामना करना पड़ रहा है। इस बीच 1996 से 2019 के बीच अब तक 1996 में एक बार बसपा और उसके बाद से लगातार 6 चुनाव से भाजपा जीत रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि बसपा से सुखलाल कुशवाहा ओबीसी वर्ग से आते हैं, तो भाजपा से लगातार पटेल सतना संसदीय सीट में चुनाव जीत रहे हैं, दो बार 1996 और 98 में रामानंद सिंह तो 2004 से गणेश सिंह लगातार सांसद चुने जा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी भाजपा ने पांचवी बार गणेश सिंह पर ही भरोसा जताया है।

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