पलायन की मार झेल रहा है उत्तराखंड, ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवरे तो बदलेगी स्थिति

उत्तराखंड में पलायन ऐसा विषय है, जिसे थामने की चुनौती अभी भी बरकरार है। यद्यपि, तस्वीर कुछ बदली है, लेकिन रास्ता लंबा है। गांवों से पलायन अब अन्य राज्यों की बजाय अपने ही राज्य के शहरों में अधिक दिख रहा है। यह बात निकलकर आ रही है कि यदि गांवों में ही विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार, स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध हो जाएं तो इससे ग्रामीण आर्थिकी तो संवरेगी ही, पलायन पर अंकुश लगने के साथ ही प्रवासी भी घर वापसी के लिए प्रेरित होंगे।

इस सबके दृष्टिगत पलायन निवारण आयोग ने सरकार को सुझाव दिया है कि कम से कम अगले 10 वर्षों तक गांवों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 85 प्रतिशत भाग पर्वतीय है। राज्य के 10 पर्वतीय जिलों में लगभग 75 प्रतिशत और मैदानी क्षेत्रों में 60 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में है।

पलायन बना बड़ी चुनौती

ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है। यह आर्थिक असमानता के साथ ही घटती खेती, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों की प्रति व्यक्ति आय में कमी जैसी चुनौतियों को दर्शा रहा है। इस सबको देखते हुए सरकार ने पलायन की स्थिति, कारण व समाधान के दृष्टिगत उपाय सुझाने के लिए ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत पलायन आयोग का गठन किया।

गांवों की तस्वीर बदलने पर जोर

आयोग ने वर्ष 2018 में सभी गांवों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इसके साथ ही आयोग ने सभी जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की रिपोर्ट देने के साथ ही कई सुझाव भी दिए। पलायन की तस्वीर सामने आने के बाद सरकार ने गांवों में मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही आजीविका के अवसर बढ़ाने पर जोर दिया। 50 प्रतिशत से अधिक पलायन वाले गांवों में एकीकृत योजनाएं संचालित की गयी। साथ ही स्वरोजगार के दृष्टिगत कई योजनाएं संचालित की।

सरकार की योजनाओं का पड़ा कम असर

यही नहीं, कोरोना संकट के दौरान गांव लौटे प्रवासियों के लिए स्वरोजगार की दिशा में मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, पलायन रोकथाम योजना शुरू की गई। इस सबके कुछ सार्थक नतीजे भी आए। कुछ प्रवासियों ने घर वापसी भी की, लेकिन इनकी संख्या कम है। सरकार की पहल का कितना असर पड़ा, इसे देखते हुए आयोग ने पिछले वर्ष दोबारा गांवों का सर्वे किया।

इसमें बात सामने आई कि गांवों से पलायन तो हो रहा है, लेकिन यह नजदीकी कस्बों व राज्य के शहरों में हुआ है। अन्य राज्यों के शहरों में जाने की रफ्तार थमी है। परिदृश्य बता रहा है कि गांव अभी भी खाली हो रहे हैं। यह बात अलग है कि राज्य के शहरों में पहुंचे व्यक्तियों का गांवों में आना-जाना निरंतर बना हुआ है।

रोजगार मिले तो लगेगा पलायन पर विराम

ऐसे में अब सरकार को गांवों पर अधिक ध्यान देना होगा। बात समझने की है कि यदि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुधारने की दिशा में तेजी से कदम उठाए जाएंगे तो इससे पलायन पर अंकुश लगेगा। यदि गांव व उसके आसपास ही स्वरोजगार, रोजगार के अवसर मिल जाएं तो कोई अपनी जड़ों को क्यों छोड़ेगा।

पलायन की स्थिति

  • वर्ष 2018 – 6338 गांवों से 383726 व्यक्तियों ने किया अस्थायी पलायन।
  • 3946 गांवों से 117981 ने किया स्थायी पलायन।
  • वर्ष 2022 – 6436 गांवों से अस्थायी पलायन करने वालों की संख्या हुई 307310।
  • 2067 गांवों से 28531 ने किया स्थायी पलायन।

यह है दरकार

  • स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार गांवों के लिए बने कार्ययोजना।
  • ग्राम्य विकास के दृष्टिगत सभी विभागों की योजनाएं एक साथ हों संचालित।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर मुहैया कराने को ठोस कसरत।
  • माध्यमिक के साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों को बनाया जाए केंद्र।
  • गांवों की योजनाएं बनाने में स्थानीय निवासियों की हो सहभागिता।
  • प्रवासियों को घर वापसी के लिए प्रेरित करने को बने ठोस योजना।

अधिकारी ने कही ये बात

यह सही है कि गांवों और वह भी विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में जनसंख्या कम हुई है। यद्यपि, सरकार ने पलायन की रोकथाम को कदम उठाए हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आयोग की ओर से सरकार को सुझाव दिया गया है कि कम से कम 10 वर्ष तक गांवों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाए। ऐसी योजनाएं धरातल पर उतारी जाएं, जिनसे पलायन थम सके। -डा एसएस नेगी, उपाध्यक्ष, पलायन निवारण आयोग।

ये भी तथ्य

  • वर्ष 2018 से 2022 के मध्य ऊधम सिंह नगर व हरिद्वार जिले में अधिक हुआ अस्थायी पलायन।
  • देहरादून, चमोली, टिहरी, पौड़ी, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग व चंपावत में अस्थायी पलायन पर लगा अंकुश।
  • अल्मोड़ा, टिहरी व पौड़ी जिलों से क्रमश: 5926, 5653 व 5474 ने किया स्थायी पलायन।
  • ऊधम सिंह नगर व देहरादून के गांवों से अन्य जिलों में अपेक्षाकृत कम स्थायी पलायन।
  • वर्ष 2018 से 2022 के मध्य 24 गांव हुए वीरान, राज्य में वीरान गांवों की संख्या हुई 1726।
  • गांवों में रोजगार, स्वरोजगार के अवसर सृजित होने से पलायन पर लगेगा अंकुश
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