छत्तीसगढ़: जब 1957 में मतदाताओं ने डाले थे दो-दो बार वोट, जानिए…

अविभाजित मध्य प्रदेश के धमतरी चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं ने दो-दो बार वोट डाले थे। यह बात 1957 की है, जब धमतरी की विधानसभा दो सदस्यीय थी। मौजूदा समय में धमतरी विधानसभा क्षेत्र छत्तीसगढ़ में आता है और यहां पर भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी आमने-सामने हैं।

इतिहास के पन्नों को पलटे तो दो सदस्यीय धमतरी की विधानसभा में एक विधायक सामान्य वर्ग, जबकि दूसरा विधायक अनुसूचित जनजाति से चुना गया था। कांग्रेस के पुरुषोत्तम दास पटेल एवं झिटकू राम ने चुनावी मैदान को फतह किया और विधानसभा पहुंचने में कामयाब हुए थे।

चुनाव आयोग के मुताबिक, मध्य प्रदेश राज्य गठन के बाद 1957 में दो सदस्यीय धमतरी विधानसभा के लिए 25 फरवरी, 1957 को वोटिंग हुई। इस दौरान कुल 1,06,681 मतदाताओं में से 94,453 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था।

पुरुषोत्तम दास पटेल ने दर्ज की थी जीत

धमतरी में 1957 में 87.60 फीसद वोटिंग हुई थी। सामान्य वर्ग की सीट के लिए चार उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। इस चुनाव में कांग्रेस के पुरुषोत्तम दास पटेल, जनसंघ के पंढरी राव कृदत्त, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रामसेवक मिश्रा और राघेश्याम चुनावी मैदान में थे। हालांकि, पुरुषोत्तम दास पटेल 2,196 वोट से बाजी मार ली थी।

5 हजार से ज्यादा वोट से जीते थे झिटकूराम

सामान्य वर्ग की सीट के लिए जहां चार उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। वहीं, अनुसूचित जनजाति के विधायक पद के लिए छह उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी।

कांग्रेस के झिटकूराम को 18,668, भारतीय जनसंघ के अकबर सिंह को 13,238, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के प्रफुल्ल चंद्र को 5,331, निर्दलीय परदेसी राम को 4,459, निर्दलीय लाल सिंह को 3,023 और निर्दलीय बहुरन सिंह को 2,264 वोट मिले थे। इस चुनाव में झिटकूराम ने 5,430 वोट के अंतर से अकबर सिंह को पटकनी दी थी।

‘बैलगाड़ी से प्रचार करते थे उम्मीदवार’

नूतन उमावि धमतरी के सेवानिवृत्त प्राचार्य पीपी शर्मा ने 1957 के चुनाव को याद करते हुए बताया कि उस समय बड़ी सादगी के साथ चुनाव लड़ा जाता था। लोग स्वप्रेरित होकर वोट डालने जाते थे।

उन्होंने बताया कि अपनी विचारधारा की पार्टियों और उम्मीदवारों से स्वप्रेरित होकर लोग प्रचार-प्रसार के लिए निकलते थे। उस वक्त चुनाव प्रचार का प्रमुख साधन बैलगाड़ी होती थी। प्रचार के लिए घर से बाहर निकले उम्मीदवार की कई-कई दिनों तक वापसी नहीं होती थी और वह कार्यकर्ता के घर पर रुक जाया करते थे।

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