सोलह श्रृंगार कर किन्‍नर एक रात के लिए बनते है दुल्‍हन, अगले दिन विधवा….

किन्‍नर या हिजड़े ना तो पूरी तरह पुरुष होते हैं और ना ही महिला। लिहाजा उनकी शादी होती है या नहीं, इस बात को लेकर असमंजस बना रहता है। सामान्य रूप से अलग समुदाय के रूप में रहने वाले किन्‍नरों को लेकर माना जाता है कि वे हमेशा अविवाहित रहते हैं। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है किन्‍नर शादी करते हैं तथा सिर्फ एक रात के लिए शादी करके दुल्‍हन बनते हैं। किन्‍नरों की शादी किसी मनुष्य से नहीं बल्कि उनके भगवान से होती है। किन्नरों के भगवान हैं अर्जुन एवं नाग कन्या उलूपी की संतान इरावन जिन्हें अरावन के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत में अज्ञातवास के चलते अर्जुन किन्‍नर के तौर पर ही रहे थे।  

किन्नरों की शादी का जश्न शानदार होता है। यह प्रत्येक वर्ष तमिलनाडु के कूवगाम में होता है। त‌मिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा से किन्नरों की शादी का उत्सव आरम्भ होता है जो 18 दिनों तक चलता है। 17 वें दिन किन्नरों की शादी होती है। वे दुल्‍हन की भांति सोलह श्रृंगार करते हैं, उन्‍हें किन्‍नरों के पुरोहित मंगलसूत्र भी पहनाते हैं। 

हालांकि विवाह के अगले दिन अरावन या इरवन देवता की प्रतिमा को शहर में घुमाया जाता है तथा फिर इसे तोड़ दिया जाता है। यह इसलिए किया जाता है ताकि किसी को भी किन्‍नर तौर पर जन्‍म ना लेना पड़े। तत्पश्चात, किन्नर अपना पूरा श्रृंगार उतारकर एक विधवा की तरह विलाप करते हैं। इस प्रकार किन्‍नर शादी के अगले दिन ही विधवा भी हो जाते हैं। 

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