Modi Masjid: जाने उस ‘मोदी मस्जिद’ के बारे में, जिसका प्रधानमंत्री के नाम से कोई संबंध नहीं

बेंगलुरू: आज 6 दिसंबर है और चर्चा बाबरी मस्जिद की है.  इस बीच आपको बताते हैं ‘मोदी मस्जिद’ के बारे में, जिसके नाम में तो मोदी है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कोई संबंध नहीं है. यानी ये मस्जिद पीएम मोदी के नाम पर नहीं है.

ये ‘मोदी मस्जिद’ दक्षिण राज्य कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू के टस्कन टाउन में है. मस्जिद के गेट पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘मोदी मस्जिद’ लिखा हुआ है. इंग्लिश और अरबी दोनों भाषाओं में मस्जिद के गेट पर मोदी मस्जिद लिखा बोर्ड है.

कैसे पड़ा नाम?

दरअसल, इस मस्जिद का नाम इलाके के एक कारोबारी रहे मोदी अब्दुल गफूर के नाम पर है. मोदी अब्दुल गफूर बेंगलुरू के टस्कर टाउन में रहते थे. उस वक्त ये क्षेत्र मिलिट्री और सिविल स्टेशन के नाम मशहूर हुआ करता था. जितना प्रसिद्ध ये एरिया था, उतना ही नाम मोदी अब्दुल गफूर का था.

वो एक बड़े व्यवसायी थे, जिनका बिजनेस भारत से लेकर ईरान तक फैला था. मोदी अब्दुल गफूर धनवान थे, रसूखदार थे. लिहाजा उन्होंने यहां एक मस्जिद बनाने के बारे में सोचा. साल 1849 में मोदी अब्दुल गफूर ने ये मस्जिद बनवा दी, जिसके चलते उनके नाम पर ही ये मस्जिद ‘मोदी मस्जिद’ कहलाने लगी.

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हालांकि, इसके बाद भी अब्दुल गफूर परिवार ने बेंगलुरु के दूसरे इलाकों में मस्जिदें बनवाई हैं. टैनरी इलाके में मोदी अब्दुल गफूर के नाम पर एक सड़क भी है.

2015 में नए रूप में आ गई मस्जिद

‘मोदी मस्जिद’ फिलहाल बेहद खूबसूरत नजर आती है. मस्जिद को अंदर से बहुत ही शानदार तरीके से डिजाइन किया गया है. दीवारों पर कुरान की आयतें लिखी गई हैं. लाइटिंग ऐसी है, मानो किसी हॉल में सजावट की गई हो. ये पूरी इमारत इंडो-इस्लामिक शैली में बनाई गई है.

हालांकि, ‘मोदी मस्जिद’ हमेशा से ऐसे नहीं थी. पहली बार जो मस्जिद बनाई गई थी, उसी जगह पर ये नई इमारत खड़ी की गई है. 2015 में मस्जिद अपने नए रूप में आ गई थी. ये मस्जिद 30 हजार स्क्वायर फीट एरिया में बनी है.

महिलाओं के लिए नमाज की अलग जगह

आमतौर पर भारत की मस्जिदों में महिलाओं को नमाज पढ़ते नहीं देखा जाता है, लेकिन ‘मोदी मस्जिद’ में महिलाओं के लिए अलग से एक फ्लोर दिया गया है. जो भी महिलाएं यहां आती हैं, वो नमाज भी अदा कर पाती हैं.

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