22 साल बाद भी अधूरे हैं राज्य के लिए संघर्ष करने वाले आंदोलनकारियों के सपने

राज्य सरकार की ओर से कई जलसे सरकारी स्तर पर किए जा रहे हैं। राज्य सरकार राज्य के विकास के लिए अपनी उपलब्धियों का बखान बड़े जोर शोर से कर रही है वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन से जुड़े हुए कई संगठन उत्तराखंड राज्य के 22 सालों के इतिहास से निराश हताश हैं और यह संगठन विभिन्न वैचारिक गोष्ठियों के माध्यम से राज्य के 22 सालों के इतिहास को अपने-अपने नजरिए से पेश कर रहे हैं।

इन जन आंदोलन से जुड़े संगठनों का मानना है कि अब राज्य को बचाने के लिए एक प्रखर जन आंदोलन की जरूरत है वरना यह राज्य माफिया, जंगल माफियाओं, शराब माफियाओं तथा कुछ राजनेताओं के निहित स्वार्थों की बलिवेदी पर भेंट चढ़ जाएगा। जन आंदोलन से जुड़े इन संगठनों का मानना है कि 22 सालों में भी राज्य में बेरोजगारी और पलायन की समस्या ज्यों की त्यों खड़ी है और राज्य की जनता जल ,जंगल, जमीन से जुड़े सवालों का आज भी उसी तरह से जवाब मांग रही है जैसे 1994 में उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए चलाए गए सबसे बड़े जन आंदोलन के समय जनता ने मांगे थे।

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अल्मोड़ा के रहने वाले राज्य आंदोलनकारी और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं कि 22 सालों में उत्तराखंड में राज करने वाले विभिन्न राजनीतिक दलों ने राज्य के आंदोलनकारियों से छलावा किया और इन राजनीतिक दलों की सरकारों ने जन विरोधी, पूंजीपतियों, भू माफिया को संरक्षण देने वाली नीतियों को बढ़ाया और आंदोलन के समय आंदोलनकारियों द्वारा बुने गए सपनों को ध्वस्त कर दिया।

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