उत्तराखंड: बीजेपी ने नए जिलाध्यक्षों के ऐलान से साधा जातीय समीकरण, यहां देखें पूरी लिस्ट

हल्द्वानी : आखिरकार लंबी जद्दोजहद और माथापच्ची के बाद बीजेपी संगठन ने उत्तराखंड की अपने जिला अध्यक्षों के नामों का ऐलान कर दिया. सरकारी स्तर पर बने 13 जिलों में बीजेपी ने अपने संगठन के 19 जिले बनाए हैं. इन सभी जिलों में रविवार शाम नए जिला अध्यक्षों के नाम का ऐलान कर दिया गया. नए जिला अध्यक्षों के नियुक्ति की जानकारी प्रदेश महामंत्री और कार्यालय प्रभारी आदित्य कोठारी ने दी.

कोठारी ने जो लिस्ट जारी की है उसमें उत्तरकाशी में सत्येंद्र राणा, चमोली में रमेश मैखुरी, रुद्रप्रयाग में महावीर पवार, टिहरी में राजेश नौटियाल, देहरादून ग्रामीण में मीता सिंह, देहरादून महानगर में सिद्धार्थ अग्रवाल, ऋषिकेश में रविंद्र राणा, हरिद्वार में संदीप गोयल, रुड़की में शोभाराम प्रजापति, पौड़ी में सुषमा रावत, कोटद्वार में वीरेंद्र रावत, पिथौरागढ़ में गिरीश जोशी, बागेश्वर में इंदर सिंह फरस्वान, रानीखेत में लीला बिष्ट, अल्मोड़ा में रमेश बहुगुणा, चंपावत में निर्मल मेहरा, नैनीताल में प्रताप बिष्ट, काशीपुर में गुंजन सुखीजा और उधम सिंह नगर में कमल जिंदल को जिला अध्यक्ष बनाया गया है.

जातीय समीकरण साधने की कोशिश
खास बात यह है कि जिला अध्यक्षों के ऐलान में बीजेपी ने हर तरह के जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. 19 जिला अध्यक्षों में जहां 10 राजपूत, दो में पंजाबी, चार में ब्राह्मण, दो बनिया और एक अन्य जाति के व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बनाया गया है. एक तरह से बीजेपी ने सभी जातियों के लोगों को जिला अध्यक्षों के स्तर पर प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है.

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ये हैं चुनौतियां
नए जिला अध्यक्षों के सामने सबसे बड़ी चुनौती सबसे पहले 2023 में आ रहे निकाय चुनाव हैं. इसके बाद इनकी अग्निपरीक्षा 2024 के लोकसभा चुनाव में होगी. इन दोनों ही अग्नि परीक्षाओं को पास करने के लिए इन्हें एक बेहतर टीम बनानी होगी. जिसमें पार्टी के पुराने वर्करों के साथ ही काम करने वाले लोगों को जगह देनी होगी. जिला अध्यक्षों के सामने सबसे बड़ी चुनौती संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाए रखना होगा, क्योंकि पार्टी इस समय राज्य में सत्ता में है इसलिए राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की योजनाएं भी जनता के बीच ले जानी है. साथ ही किसी तरह की एंटी इनकंबेंसी न पैदा हो इसका भी विशेष ख्याल नए जिला अध्यक्षों को रखना होगा. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हुई जिला अध्यक्षों की नियुक्ति एक तरह से कांटो भरा ताज है, क्योंकि सभी जिला अध्यक्षों के सामने 2019 लोकसभा चुनाव की जीत को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती होगी.

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