उत्तराखंड: ब्रिटिशकालीन नामों को बदलने पर शुरू हुई बहस, मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद से गरमाया मामला

देहरादून : उत्तराखंड में ब्रिटिशकालीन नामों को बदले जाने को लेकर बहस शुरू हो गई है. इतिहासकारों का मानना है कि इन नामों के पीछे एक पूरा इतिहास छुपा हुआ है, जिसे बदलना ठीक नहीं. वहीं नाम बदले जाने का समर्थन कर रहे लोगों का कहना है कि ये नाम गुलामी का प्रतीक हैं. इन्हें बदला ही जाना चाहिए. आपको बता दें कि हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में ब्रिटिशकालीन नामों को बदलने की घोषणा की है. जिसके बाद से नाम बदलने को लेकर लगातार प्रदेश में बहस छिड़ी हुई है.

गौरतलब है कि भारत दो सौ साल तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा. इन सालों में समय के साथ-साथ कई परिवर्तन भी हुए. अंग्रेज भारत छोड़कर तो चले गए लेकिन उनके द्वारा रखे गए वो नाम इतने प्रचलित हुए कि आज उन नामों से ही उस जगह की पहचान जुड़ गई. उन्हीं में एक है उत्तराखंड के पौड़ी में स्थित लैंसडौन.

लैंसडौन को लेकर छिड़ी बहस
हाल ही में ‘लैंसडौन सैन्य छावनी’ का नाम बदलकर ‘कालौं का डंडा’ किए जाने की चर्चा जोरों पर है. इसका नाम बदलने को लेकर लोग दो गुटों में बंटे हुए हैं. आपको बता दें कि लैंसडौन की खोज अंग्रेजों के जमाने में हुई. वायसराय लॉर्ड लैंसडौन ने यहां गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना की और उनके नाम पर इस जगह का नाम लैंसडौन पड़ा. इतिहासकार वाईएस बड़थ्वाल का कहना है कि ये अच्छे काम करने वाले एक ऑफिसर को सम्मान था. लैंसडौन गढ़वाल के ब्लड में जुड़ा हुआ है. पूरी दुनिया में गढ़वाली कम्यूनिटी को इसी सेंटर ने योद्धा के रूप में पहचान दिलाई. जिसके बाद गढ़वाल रायफल्स को रॉयल गढ़वाल की उपाधि मिली.

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संघ ने किया समर्थन
ब्रिटिशकालीन नामों को बदलने की चर्चा में एक्टिविस्ट लोकेश ओहरी का कहना है कि मसूरी की खोज अंग्रेजों ने की. ब्रिटिशकाल में सुप्रीटेंडेंट रहे मेजर यंग ने लंढौर की खोज की. उन्होंने इंग्लैड में अपने गांव लैडरोर के नाम पर इसका नाम लंढौर रखा. लोकेश ओहरी का कहना है कि हर जगह का अपना इतिहास होता है, जो उसके नाम से जुड़ा होता है. वहीं दूसरी ओर बीजेपी से जुड़े रहे संघ विचारक प्रभाकर उनियाल ऐसा नहीं मानते. प्रभाकर उनियाल का कहना है कि ब्रिटिश आकाओं को खुश करने के लिए नाम रखे गए थे. इनको रखने का कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने ब्रिटिशकालीन नाम बदले जाने का समर्थन करते हुए कहा कि यह सही कदम है.

इतिहासकारों ने किया विरोध
राज्य में जगहों के नाम बदलने को लेकर इतिहासकार कहते हैं कि नाम बदले तो अल्मोड़ा के विख्यात ब्रिटिशकालीन रैमजे इंटर कॉलेज का नाम भी बदलना होगा. जिसे 1871 में तत्कालीन कमिशनर हेनरी रैमजे ने बनाया था. कुल मिलाकर लैंसडौन से शुरू हुई नाम बदलने की बहस अब कहां जाकर खत्म होगी कहा नहीं जा सकता. इस पर पूरे राज्य में बहस छिड़ी हुई है. बीजेपी समेत संघ समर्थक नाम बदलने का समर्थन कर रहे हैं तो वहीं कुछ इतिहासकार ऐतिहासिक विरासत का हवाला देते हुए नाम बदलने का विरोध कर रहे हैं.

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