ये हैं वे प्रमुख जगहें जहां भगवान राम और माता सीता ने काटा था 14 साल का वनवास
रामायण ग्रंथ के अनुसारभगवान मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला था. उनके साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण वन में गए थे. अयोध्या छोड़कर तीनों 14 वर्ष तक भारत-भूमि पर विभिन्न स्थानों पर रहे. वे उत्तरी भाग से लेकर दक्षिण में समुद्र तट पार कर लंका तक गए.
चलिए जानते है कि श्रीराम वनवास के मार्ग में कहां-कहां रुके और क्या-क्या कार्य किए –
1. श्रृंगवेरपुर नगरी: अयोध्या से विदा होकर आर्य सुमंत के साथ राम तमसा नदी के तट तक पहुंचे. जहां रात गुजारी और फिर सबके जागने से पहले ही कौशल देश से बाहर हो गए. वे निषादराज गुह की नगरी श्रृंगवेरपुर के पास के वनों में पहुंचे. वहां 1 दिन रुके. उसके बाद केवट की नाव के सहारे गंगा नदी को पार किया और कुरई गांव में रुके.
2. प्रयाग: यहां उन्होंने त्रिवेणी की सुंदरता को देखा, फिर भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचे. उसके बाद यमुना पार चित्रकूट के लिए निकले.
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3. चित्रकूट: यहां उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में महर्षि से भेंट की. फिर गंगा की धारा मंदाकिनी नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे. यहीं पर उनका भरत, अयोध्या के राजपरिवार, मंत्री, गुरुओं और ससुर से मिलन हुआ.
4. दंडकारण्य वन: ये वन हजारों कोस में फैले थे. यहां आकर पहले श्री राम ने ऋषि अत्री व अनुसूइयां से आश्रम में भेंट की. सीता को कभी न मैले होने वाले दिव्य वस्त्र मिले. यहां से निकलकर, वे शरभंग ऋषि से मिले. उसके बाद वनों में घूम-घूमकर राक्षसों का अंत करने लगे.
5. दंडकारण्य में रहते श्रीराम के वनवास को 12 वर्ष बीत चुके थे. एक दिन उनकी भेंट महान ऋषि अगस्त्य मुनि से हुई. अगस्त्यजी से ही उन्हें युद्ध के लिए उचित धनुष, अक्षय तरकश व रावण का वध करने योग्य दिव्यास्त्र प्राप्त हुए.
6. फिर वे गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी में रहे. जटायु से भी भेंट हुई. यहीं एक दिन शूर्पनखा ने श्रीराम को देखा. लक्ष्मण ने उसकी नाक काट दी. उसके बाद यहीं, श्रीराम ने रावण के भाई खर-दूषण को सेना सहित मार डाला. यहीं से रावण ने सीता-हरण किया.
7. सीता-हरण बाद श्रीराम मतंग ऋषि के आश्रम पहुंचे, जहां शबरी से मिले. वहां से उन्हें किष्किन्धा के राजा बालि के छोटे भाई सुग्रीव का पता चला. वे ऋष्यमूक/ ऋषिमुख पर्वत पहुंचे. जहां हनुमान, सुग्रीव आदि से मिले. सीताजी की खोज होने पर धनुषकोड़ी पहुंचे, जहां रामेश्वरम की स्थापना की. अंत में लंका पहुंचे थे.