उत्तर प्रदेश लोक सभा चुनाव से पहले आरक्षण पर सपा-भाजपा में होड़!

लखनऊ : 14 सितम्बर को केंद्र सरकार ने पांच राज्यों की 12 जातियों को एसटी का दर्जा दे दिया. इसमें यूपी की गोंड समेत उसकी पांच उपजातियों को शेष चार जिलों में एसटी में शामिल करने का अधिकार मिल गया. ऐसे में सपा ने केवट समेत 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने की आवाज बुलंद कर दी है. वहीं अंदर खाने में योगी सरकार भी सपा के इस पुराने मुद्दे को साध कर एक बड़ा वोटर अपने पाले में खींचने जुगत में बताई जा रही है. अब देखने यह है कि आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा-सपा में मची होड़ लोकसभा चुनाव में क्या गुल खिलाती है.

सपा का हर जिले में महापंचायत का एलान
सपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के निवर्तमान अध्यक्ष राजपाल कश्यप ने कहा कि 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल कराना सपा का मुख्य मकसद है. इसके लिए समाजवादी हर संघर्ष को तैयार हैं. लखनऊ में रविवार को महापंचायत में इसका एलान हुआ. इसमें समाज के लोगों ने प्रतिभाग किया. वहीं अब लोकसभावार, जिला और  मंडल पर  महापंचायत आयोजित किए जाएंगी. इसमें आरक्षण को लेकर जन जागरुकता पैदा की जाएगी. समाज से अपने अधिकार को लेने के लिए एकजुट होने का आवाहन किया जाएगा.

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योगी सरकार भी चल रही अंदरखाने दांव
योगी सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल अति पिछड़ी 17 जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दे सकती है. इसकी चर्चा हाल में ही जोर पकड़ी.  सितम्बर के पहले हफ्ते में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मंत्री संजय निषाद और समाज कल्याण मंत्री अरुण असीम की मुलाकात हुई. ऐसे में आरक्षण की आस में दशकों से मझधार में फंसी 17 अति पिछड़ी जातियों की नैया को ठोस किनारा मिलने की उम्मीद जगी. यदि योगी सरकार ने ऐसा फैसला लिया तो सपा से यह भी मुद्दा हाथ से निकल जाएगा. जानकारों की मानें तो पूरी संभावना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा उत्तराखंड की तर्ज पर 13 प्रतिशत आबादी वाली इन जातियों पर बड़ा दांव चलेगी.

कहां पर फंस रहा मसला
उत्तर प्रदेश में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआ ऐसी 17 अति पिछड़ी जातियां हैं, जिन्हें संविधान में तो अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया. मगर तकनीकी व राजनीतिक उलटफेर के चलते यह अनुसूचित जाति वर्ग की सूची से बाहर हो गईं. अनुसूचित संविधान आदेश 1950 के आधार पर 1991 तक इन्हें अनुसूचित जाति का आरक्षण मिला और उसके बाद से इनका हक राजनीतक दलों के लिए एक ‘मुद्दा’ बनकर रह गया, जो चुनावों के दौरान फुटबाल की तरह राजनीतिक चौखट और कोर्ट के कठघरों तक भटकता रहा.

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