17 साल बाद खुले इन तीन गांवो में स्कूल, जाने इसके पीछे की वजह

बीजापुर : वर्ष 2005 में सलवा जुड़ुम अभियान ने दहशत और आतंक का माहौल पैदा कर सैकड़ों गांवों के नागरिकों को विस्थापन का दंश झेलने मजबूर कर दिया. इस दौरान जिले में 350 स्कूल बंद हो गए और हजारों बच्चों के भविष्य पर ग्रहण लग गया. शिक्षा विभाग के प्रयासों से जिले में बीते 3 साल में 160 से ज्यादा स्कूल खुले, लेकिन मोसला कचिलवार और गुण्डापुर की चुनौतियों से पार नहीं पाया जा सका था. ग्रामीणों की रजामंदी के बाद झोपड़ी के स्कूल फिर से शुरू किए गए.

17 साल के बाद स्कूल खुलने की दौरान गांव के मुखिया और पुजारी ने स्थानीय रीति-रिवाज से पूजा अर्चना की और बच्चों के साथ राष्ट्रगान का गायन किया गया. मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान सत्र में बीजापुर के दूरस्थ और अतिसंवेदनशील इलाके के मोसला में 34, कचिलवार में 32 और गुण्डापुर में 34 बच्चों का दाखिला कराया गया है. इनके पढ़ने की जगह को कुटिया के रूप में ग्रामीणों ने मिलकर तैयार किया है, जबकि कॉपी, कलम, किताब और स्कूली ड्रेस सरकार ने मुहैया कराई है.

जाहिर है छतीसगढ़ सरकार की विश्वास बढ़ाने और अंतिम छोर तक सरकार की योजनाओं को पहुंचाने की नीति ने एक बार फिर माओवाद प्रभावित इलाके में ग्रामीणों के दिल जीतने में कामयाबी पाई और मोसला कचिलवार गुण्डापुर जैसे नक्सलगढ़ में फिर अ आ इ ई की गूंज सुनाई देने लगी है.

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बहरहाल, अनगिनत बाधाओं और चुनौतियों को पार कर नक्सलगढ़ के ग्रामीण अपने 3 गांवों में 17 साल बाद स्कूल खोलने में सफल हुए. जाहिर तौर पर इसमें सरकार की भूमिका बड़ी अहम रही है. इन तीनों गांवों का उदाहरण लें तो यह कहा जा सकता है कि कोशिश अगर निष्ठा से की जाए तो वह अवश्य सकारात्मक परिणाम देती है.

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