आखिर आदमखोर बाघ को ज़िंदा पकड़ने में वन विभाग की टीम ने हासिल की कामयाबी
दिल्लीः उत्तराखंड के वन विभाग के लिए एक बाघ को सिर्फ ट्रैंकुलाइज़ करने के सबसे लंबे अभियान का रिकॉर्ड अब कुल 120 दिनों का हो गया है. फतेहपुर रेंज में जिस आदमखोर बाघ को पकड़ने के लिए गुजरात से स्पेशल टीम को बुलाया गया था और मचान बनाने से लेकर हाथियों पर गश्ती तक जो तमाम उपाय अपनाए गए थे, उसका नतीजा 4 महीने बाद यह निकला है कि एक बाघ को ट्रैंकुलाइज़ गन से बेहोश किया जा सका, लेकिन अभी यह तय होना बाकी है कि यह वही आदमखोर बाघ है भी या नहीं.
फतेहपुर रेंज के जंगलों में महीनों से भटक रही वन विभाग की टीम ने मंगलवार 21 जून की शाम आखिर एक बाघ को ट्रेंकुलाइज़ कर लिया. लेकिन तब भी टीम का सिरदर्द खत्म नहीं हुआ. खबरों की मानें तो ट्रेंकुलाइज़ गन का शॉट लगने के बाद घने जंगल में बाघ इस तरह खो गया कि बेहोश बाघ को तलाशने में टीम को करीब पौन घंटे का वक्त लगा. उसके बाद किसी तरह बेहोश बाघ को गांव वालों से छुपाकर, स्पेशल स्ट्रेचर पर रखकर नैनीताल के चिड़ियाघर पहुंचाया गया ताकि उसकी मेडिकल जांच हो सके.
पहले शिकार का था प्लान, जो टाला गया
वन विभाग के मुताबिक रामनगर डिविज़न की रेंज में 29 दिसंबर 2021 से इस साल जून महीने तक सात मौतें बाघ के हमले से हुईं. एक बाघ के साथ ही एक बाघिन भी संदेह के दायरे में थी. हालांकि पहले बाघ को आदमखोर मानकर यूपी और हिमाचल से पेशेवर शिकारियों को बुलाया गया था, लेकिन संदिग्ध बाघ के शिकार हो जाने के डर से इस प्लान को छोड़कर आपरेशन आदमखोर चलाया गया और बाघ को बेहोश कर ज़िंदा पकड़ने के लिए गुजरात से 30 विशेषज्ञों की टीम बुलाई गई थी.