शून्य हो जाने की अवस्था है ध्यान
परमात्मा घटता रहता है तुम्हारे चारों तरफ, अनंत-अनंत रूपों से, और तुम अपने में बंद, अपने हृदय के कपाटों को बंद किए परमात्मा के सागर में जीते हुए भी उससे अपरिचित रह जाते हो।
र्वाण को शब्द में कहा तो नहीं जा सकता है। फिर भी समस्त बुद्धों ने उसे व्यक्त किया है। जो नहीं हो सकता उसे करने की चेष्टा की है। और ऐसा भी नहीं है कि बुद्धपुरुष सफल न हुए हों।
सभी के साथ सफल नहीं हुए, यह सच है। क्योंकि जिन्होंने न सुनने की जिद ही कर रखी थी, उनके साथ सफल होने का कोई उपाय ही न था। उनके साथ तो अगर निर्वाण को शब्द में कहा भी जा सकता होता तो भी सफलता की कोई संभावना न थी, क्योंकि वे वज्र-बधिर थे।
लेकिन जिन्होंने हृदय से गहा, जिन्होंने प्रेम की झोली फैलाई और बुद्धपुरुषों के वचनों को ग्रहण किया, उन तक वह भी पहुंच गया, जो नहीं पहुंचाया जा सकता।
उन तक उसकी भी खबर हो गई, जिसकी खबर की ही नहीं जा सकती है। उसी अर्थ में दरिया (संत दरिया दास) कहते हैं- ‘दरिया कहै शब्द निरबाना।’ कि मैं कह रहा हूं, निर्वाण से भरे हुए शब्द, निर्वाण से ओतप्रोत शब्द, निर्वाण में पगे शब्द।
जो सुन सकेंगे, जो सुनने को सच में राजी हैं, जो विवाद करने में उत्सुक नहीं, संवाद में जिनका रस जगा है, जो मात्र कौतूहल से नहीं सुन रहे हैं, वरन जिनके भीतर मोक्ष प्राप्ति की अग्नि जन्मी है, सुन पाएंगे।
शब्दों के पास-पास बंधा हुआ उन तक नि:शब्द भी पहुंचेगा। क्योंकि जब दरिया जैसा व्यक्ति बोलता है, तो मस्तिष्क से नहीं बोलता। दरिया जैसा व्यक्ति बोलता है तो अपने अंतर्तम की गहराइयों से बोलता है। वह आवाज सिर में गूंजते हुए विचारों की आवाज नहीं, वरन हृदय के अंतर्गृह में सतत बह रही अनुभव की प्रतिध्वनि है।