पुत्र का फर्ज
विक्टर एमिल फ्रैंकल एक ऑस्ट्रेलियाई न्यूरोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक, दार्शनिक व लेखक थे। फ्रैंकल एक यहूदी परिवार से थे। दूसरे विश्व युद्ध में यूएस के शामिल होने से पहले ही फ्रैंकल को विएना के अमेरिकन दूतावास से इमिग्रेशन लेने के लिए बुलावा आया।
यह समाचार सुनकर फ्रैंकल के माता-पिता खुशी से फूले न समाये। आखिर उनका सुपुत्र सुरक्षित स्थान पर जो जा रहा था। लेकिन फ्रैंकल उदास थे। उन्हें लग रहा था कि क्या मुझे अपने बूढ़े हो चले माता-पिता को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ कर चले जाना चाहिए।
मेरा उनके प्रति क्या उत्तरदायित्व बनता है। वह यह सोच ही रहा था कि उसे मेज पर संगमरमर का एक टुकड़ा दिखाई दिया। फ्रैंकल ने उसके बारे में अपने पिता से पूछा तो उन्होंने बताया कि विएना के सबसे बड़े यहूदी उपासना गृह को जब जला दिया गया तो मैं उस संगमरमर के टुकड़े को घर ले आया।
इस तख्ती के टुकड़े पर दस धर्मादेश अंकित थे। उस टुकड़े पर अंकित एक हिब्रू अक्षर के बारे में फ्रैंकल ने अपने पिता से पूछा, ‘यह किस धर्मादेश का अक्षर है?’ उनके पिता ने बताया कि इसका तात्पर्य है ‘अपने माता-पिता का आदर करो, ताकि वे धरती पर लंबे समय तक जीवित रह सकें।’ फ्रैंकल ने उसी वक्त तय कर लिया कि मैं अपने माता-पिता के साथ ही रहूंगा और अमेरिकी वीज़ा रद्द करवा दिया।