राष्ट्रभक्ति का जुनून
शांति नारायण भटनागर ने अपनी जमीन-जायदाद बेचकर इलाहाबाद से 1907 में साप्ताहिक उर्दू स्वराज अखबार निकाला। अखबार का ध्येय वाक्य था—हिन्दुस्तान के हम हैं, हिन्दुस्तान हमारा है।
संपादक अंग्रेजी सरकार की करतूतों को पूरे साहस के साथ उजागर करते थे और इसकी एवज में अंग्रेजी सरकार उन्हें काले पानी व उम्रकैद की सजा देती। जुल्मो-सितम के बावजूद अखबार और उसके संपादक कलम को भोथरा करने व पीछे हटने को तैयार नहीं थे।
एक संपादक को सजा होती तो दूसरा मैदान में आ जाता। ढाई साल तक अखबार के 75 अंक प्रकाशित हुए। इसके आठ संपादकों—शांति नारायण भटनागर, रामदास, होतीलाल वर्मा, बाबूराम हरी, मुंशी रामसेवक, नंदगोपाल चोपड़ा, लद्धाराम कपूर व अमीर चंद बंबवाल को कुल 94 साल नौ महीने की सज़ा हुई।
एक संपादक को सज़ा के बाद अखबार में विज्ञापन निकलता—एक जौ की रोटी और एक प्याला पानी यह शरहे-तनख्वाह (वेतन) है, जिस पर स्वराज इलाहाबाद के वास्ते एडिटर चाहिए।
इसके बावजूद अखबार को एडिटरों की कमी नहीं थी। अंग्रेजों के विरुद्ध अखबारों व पत्रकारों के योगदान की यह मिसाल आज भी पत्रकारिता के सिपाहियों की प्रेरणा है।