उफनते तूफान
यह अच्छी बात है कि हाल ही में देश के पश्चिमी तट पर ‘ताउते’ के तुरंत बाद आये ‘यास’ तूफान में ज्यादा मानवीय क्षति तो नहीं हुई, लेकिन संपत्ति के नुकसान को टाला नहीं जा सका। कुछ लोगों की मौत की पुष्टि के साथ बंगाल में करीब एक करोड़ लोग प्रभावित हुए और तीन लाख घरों के तबाह होने की बात कही जा रही है।
बंगाल की खाड़ी में उठा चक्रवाती तूफान बुधवार की सुबह उत्तरी ओडिशा के समुद्री तट तथा उससे लगे पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों से टकराया था। तेज हवाओं व समुद्र में ऊंची लहरें उठने के बाद रिहाइशी इलाकों में पानी भरने से नुकसान होने की खबरें हैं।
कोलकत्ता के कई निचले स्थानों पर बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई। फिर यह तूफान कमजोर होकर झारखंड व बिहार के कुछ इलाकों में बढ़ गया। यह अच्छी बात है कि मौसम विभाग की सटीक सूचनाओं के आधार पर समय रहते ओडिशा में करीब 5.8 लाख और पश्चिम बंगाल में पंद्रह लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया।
कोरोना संकट में सुरक्षित दूरी के तहत इन प्रयासों को अंजाम देना निश्चित ही चुनौती भरा काम था। लेकिन इसके चलते हम जन हानि को कम कर सके। बहरहाल, बिजली-पानी की आपूर्ति सामान्य करने और सड़कों को बाधाओं से मुक्त करने में कुछ समय लगेगा।
यह अच्छी बात है कि ताउते तूफान आने पर लापरवाही के चलते पी-305 बार्ज पर जो हादसा हुआ था, ऐसी लापरवाही इस बार उजागर नहीं हुई। तूफानग्रस्त इलाकों में नेताओं का हवाई सर्वेक्षण शुरू हो चुका है, नुकसान के आंकड़े आने में अभी कुछ वक्त लगेगा, लेकिन हमें हर तूफान से कुछ नया सीखना चाहिए।
यह अच्छी बात है कि हमने तूफान की सूचना समय से हासिल करके सुरक्षात्मक उपाय उठाकर जन-धन की हानि को कम करने में सफलता पाई है। ऐसे तूफान से जूझने की हमारी तैयारियों में पिछले तूफानों का अनुभव काम आया है।
निस्संदेह पिछली आपदा का अनुभव अगली आपदा में हमारा मार्गदर्शक बनना चाहिए। इन दो राज्यों के अलावा कई अन्य समुद्री तट पर स्थित राज्यों में बचाव के लिये एनडीआरएफ की टीमें तैनात की गई थीं।
बहरहाल, हमारी कोशिशों के बीच तूफान की तीव्रता से कुछ नुकसानों को टाला नहीं जा सकता। जिसमें पेड़ों का गिरना, जल भराव, कच्चे मकानों का ध्वस्त तथा बिजली व संचार सुविधाओं का बाधित होना शामिल है। फसलों व फलों को होने वाली क्षति भी इसमें शामिल है।
समय रहते मछुआरों को सूचित करने व नौकाओं तथा जहाजों को समुद्र से हटाने से भी जन-धन की क्षति कम होती है। लेकिन एक बात तो तय है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम के मिजाज में लगातार आ रहे बदलाव के चलते हमें ऐसे दूसरे तूफानों के लिये तैयार रहना होगा। तूफान के इस मौसम के नवंबर तक चलने की बात कही जा रही है।
साथ ही उसी तरह हमें अपने विकास के ढांचे और भवन निर्माण शैली को विकसित करना चाहिए। हमें याद होगा कि पिछले साल इसी समय में भारी-भरकम नुकसान पहुंचाने वाले ‘अम्फान’ तूफान का कहर बरपा था। उसके बाद अप्रत्याशित रूप से असमय ही ‘निसर्ग’ तूफान का हमला हुआ था।
तूफान के आने के समय और आवृत्ति कई मायनों में चौंकाने वाली हैं। बहरहाल, ‘ताउते’ और ‘यास’ तूफान ऐसे समय में आये हैं जब देश इस सदी की सबसे बड़ी कोरोना संक्रमण की महामारी से जूझ रहा है। जो उस कहावत को चरितार्थ करता है कि मुसीबत अकेली नहीं आती।
बहरहाल, हमें मानकर चलना चाहिए कि निकट भविष्य में ऐसे तूफान और आएंगे, हमें अपनी तैयारी, भविष्यवाणी का तंत्र और राहत-बचाव का ढांचा उच्चतम स्तर का तैयार रखना चाहिए, ताकि जन-धन की हानि को टाला जा सके।
इसमें उन्नत तकनीक व विज्ञान के ज्ञान का बेहतर उपयोग होना चाहिए। यह जानते हुए कि वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के मिजाज में खासी तल्खी आई है और इसका व्यवहार अप्रत्याशित है, ऐसे में और अधिक सतर्क और तैयार रहने की जरूरत है।