मानवीय संवेदनशीलता
एक शाम राजाराम मोहन राय ने अपने अध्ययन कक्ष की खिड़की से कुछ शोर और रोना-पीटना सुना। किसी महिला को उसके पति ने आवेश और नशे के जोर में मारा-पीटा था। उन्होंने उस महिला के पास जाकर कुछ समाज सेवकों की तुरंत मदद ली।
वहां पर और भी पीड़ित महिलाएं मिल गईं। सबको अपनी आवाज मुखर करने का अवसर मिला। खबर बाकी जगह भी हवा की तरह फैल गई और दो-तीन कट्टर समाज मुक्ति मंडल भी वहां आ धमके।
लेकिन उनको बहुत अखर गया कि हर कोई राजा राम मोहन राय से ही बातचीत करना चाहता है। उधर राजाराम मोहन राय किसी भी सवाल के जवाब में बेलाग बोलते जा रहे थे। मगर, पढ़े-लिखे, समृद्ध मुक्ति मोर्चा सदस्य उनकी इस विनम्रता को गुलामी समझ रहे थे।
उनकी यह सोच ही उनके भीतर असंतोष को बढ़ाती जा रही थी। उनके अहंकार चोट पहुंच रही थी। अब वे सब के सब चुनौती देने लगे कि तुम क्या महिला हो, तुमको क्या पता कि महिला का दर्द क्या होता है?
यह सुनकर राजाराम मोहन राय ने सीधा-सीधा जवाब दिया कि किसी का भला सोचने और करने के लिए बस एक मानव होना पर्याप्त है।