सावन के महीने में शिवत्व को धारण करने का दिव्य अवसर है
हमारे देश में पर्व एवं त्यौहार
हमारे देश में पर्व एवं त्यौहारों की एक समृद्ध परम्परा रही है यहां मनाये जाने वाले पर्व.त्योहार के पीछे कोई न कोई गौरवशाली इतिहास.संस्कृति का संबंध जुड़ा होता है। सभी धर्मों में धार्मिक भावना की दृष्टि से मनाये जाने वाले पर्व हैं जैसे.हिंदुओं में दीपावली नवरात्रिए मुसलमानों में रमजानए ईसाइयों में क्रिसमस आदि।
हिन्दू संस्कृति में जितने भी पर्व व त्योहारों मनाये जाते हैं लगभग सभी में तप एवं साधना का विशेष महत्व है। हिन्दुओं के लिये श्रावण मास का सर्वाधिक महत्व है। यह अवसर जहां प्रकृति के सौन्दर्यए आध्यात्मिक ऊर्जा के संचार एवं आत्मिक शक्ति के विस्तार का अलौकिक एवं दिव्य समय है।
श्रावण मास की हर घड़ी एवं हर पल भगवान शिव को समर्पित एवं उनके प्रति आस्था एवं भक्ति व्यक्त करने का दुर्लभ एवं चमत्कारी अवसर है। श्रद्धा का यह महासावन भगवान शिव के प्रति समर्पित होकर ग्रंथियों को खोलने की सीख देता है। इस आध्यात्मिक पर्व के दौरान कोशिश यह की जाती है कि हिन्दू कहलाने वाला हर व्यक्ति अपने जीवन को इतना मांज लेए इतना आध्यात्मिकता से ओतप्रोत कर लेए इतना शिवमय बना लें कि वर्ष भर की जो भी ज्ञात.अज्ञात त्रुटियां हुई हैं
महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता हैश्रावण मास के साथ मुख्य रूप से शिव भक्तिए तप और मंत्र साधना जुड़ी हुई है। संयमए सादगीए सहिष्णुताए अहिंसाए हृदय की पवित्रता से हर व्यक्ति अपने को जुड़ा हुआ पाता है और यही वे दिन हैं जब व्यक्ति घर और मंदिर दोनों में एक सा हो जाते हैं। छोटे.बड़े सभी का उत्साह दर्शनीय होता है। आहार.संयमए उपवास एवं तप के द्वारा इस श्रावण माह को उत्सवमय बनाते हैं। इस अवसर पर मंदिरोंए धार्मिक स्थलोंए पवित्र नदियों के आसपास रौनक बढ़ जाती है।
श्रद्धालु अपना धार्मिक दायित्व समझकर अध्यात्म की ओर प्रयाण करते हैं। श्रावण माह में करुणाए तपए मंत्र साधना आदि पर विशेष बल दिया जाता है। श्रद्धा एवं भक्ति का यह महाश्रावण अध्यात्म का अनूठा प्रयोग है। पीछे मुड़कर स्वयं को देखनेए जीवन को पवित्र एवं साधनामय बनाने का ईमानदार प्रयत्न है। वर्तमान की आंख से अतीत और भविष्य को देखते हुए कल क्या थे और कल क्या होना है इसका विवेकी निर्णय लेकर एक नये सफर की शुरुआत की जाती है। श्रावण में मेघ अपना नाद सुनाते हैंए प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। सम्पूर्ण प्रकृति एवं पर्यावरण नहाया हुआ होता हैए प्रकृति का सौन्दर्य जीवंत हो उठता है। कल.कल करते झरनोंए नदियों एवं मेघ का दिव्य नाद से धरती की गोद में नयी कोपलें उत्पन्न होती है।