कैग रिपोर्ट से सामने आईं उत्तराखंड फॉरेस्ट डिविजन की गड़बड़ियां

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को उत्तराखड के फॉरेटस डिविजन ऑडिट में काफी गड़बड़ी मिली है। कैग रिपोर्ट के अनुसार, फॉरेस्ट डिविजन ने प्रतिपूरक वनीकरण (कंपनसेटरी अफोरेस्टेशन) के लिए आवंटित धनराशि का इस्तेमाल आईफोन, लैपटॉप, फ्रिज और कूलर की खरीद, भवनों का नवीनीकरण, कोर्ट केस में किया।

2019-2022 की अवधि में प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (सीएएमपीए) के कामकाज पर बनाई गई कैग रिपोर्ट से पता चला है कि 13.86 करोड़ रुपये प्रतिपूरक वनरोपण के अलावा विभिन्न गतिविधियों के लिए डायवर्ट किए गए थे। जिसके तहत नॉन फॉरेस्ट पर्पस (प्रयोजन), जैसे उद्योग या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए उपयोग की जाने वाली वन भूमि पर अनिवार्य रूप से भूमि के कम से कम समान क्षेत्र पर वनरोपण की कोशिश की जाती है।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सीएएमपीए के दिशा-निर्देशों के अनुसार, धनराशि प्राप्त होने के बाद, एक साल या दो मौसमों के अंदर वनरोपण किया जाना चाहिए। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि 37 मामलों में, फाइनल क्लीयरेंस मिलने के आठ साल से ज्यादा समय बाद प्रतिपूरक वनरोपण किया गया। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसके परिणामस्वरूप प्रतिपूरक वनरोपण बढ़ाने में 11.54 करोड़ रुपये की लागत बढ़ गई।’ रिपोर्ट में लगाए गए पेड़ों की लो सर्वाइवल की बात भी कही गई, जो 33.51 प्रतिशत है। वहीं वन अनुसंधान संस्थान के अनुसार यह अनिवार्य 60-65 फीसदी से काफी कम है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पांच डिविजन 1,204.04 हेक्टेयर भूमि प्रतिपूरक वनरोपण के लिए उपयुक्त नहीं थी। भूमि की अनुपयुक्तता से पता चलता है कि डीएफओ द्वारा पेश किए गए उपयुक्तता प्रमाणपत्र गलत थे और भूमि की वास्तविक स्थिति का पता लगाए बिना जारी किए गए थे। विभाग ने उनकी लापरवाही के लिए संबंधित डीएफओ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।’ इसके अलावा, राज्य सरकार ने सीएएमपीए के अनुरोध के बावजूद 2019-20 से 2021-22 तक 275.34 करोड़ रुपये की ब्याज देनदारी का भुगतान नहीं किया।

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