Parkinson’s के इलाज की बढ़ी उम्मीद, सफल रहा पहले चरण का मानव परीक्षण, इन लक्षणों से पहचानें बीमारी
लाइलाज कही जाने वाली बीमारी पार्किंसंस के उपचार के लिए अमेरिकी दवा कंपनी ने मानव परीक्षण में एक चरण की सफलता हासिल कर ली है। अब दूसरे चरण का परीक्षण भी शुरू हो गया है। इस शोध को पेटेंट कराने वाले कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत कहते हैं कि इसी साल पार्किंसंस रोगियों का उपचार शुरू हो जाएगा।
प्रो. रावत के नेतृत्व में दिल्ली विवि के शोध छात्रों के ग्रुप की ओर से इस बीमारी के कारक अणुओं को विकसित किया गया था। 2012 में शुरू हुए इस शोध में प्रयोगशाला में करीब 600 यौगिक तैयार किए गए। जिसके लिए 12 अंतरराष्ट्रीय पेंटेंट दिए गए हैं। अंतिम पेटेंट 2022 में दिया गया।
मानव अध्ययन के सफल समापन की घोषणा
अमेरिकी फार्मा कंपनी हैनआल बायोफार्मा, डेवूंग फार्मास्युटिकल और न्यूरान फार्मास्युटिकल्स ने पार्किंसंस रोग की संभावित चिकित्सा के लिए पहले मानव अध्ययन के सफल समापन की घोषणा कर दी है। वेबसाइट में इसकी जानकारी साझा की गई है। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. रावत ने बताया कि लाइलाज पार्किंसंस रोग से पीड़ित रोगियों का उपचार इस वर्ष शुरू होगा। ताकि यह देखा जा सके कि दवा लेने के बाद उनमें कितना सुधार हुआ है।
दवा परीक्षण करने वाले रोगी पंजीकृत
फार्मा कंपनी के साथ दवा परीक्षण करने वाले रोगी पंजीकृत हो चुके हैं। अब तक पहले चरण में दवा के मानव परीक्षण में 76 प्रतिभागियों में से किसी में भी सुरक्षा से संबंधित समस्या नहीं आई। उन्होंने दवा को बेहतर तरीके से सहन किया। यही नहीं उपचार से संबंधित कोई गंभीर प्रतिकूल घटना नहीं बताई गई। इस परीक्षण में यह परिणाम आया कि दवा की खुराक दिन में एक बार ली जाएगी।
2024 में जानवरों में सफल रहा ट्रायल
पार्किंसंस के उपचार के लिए दवा का परीक्षण पिछले साल जानवरों में सफल होने के बाद मानव में शुरू कर दिया गया था। दुनिया में एक करोड़ से अधिक लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं। बीमारी के लक्षण में पूरा शरीर या हाथ पैरों का कांपना, सुन्न पड़ना या चाल धीमी पड़ना आदि हैं। यह बीमारी रोगियों के गंभीर डिप्रेशन का कारण भी बनती हैं।
शोध में खास प्रोटीन की पहचान
प्रो. रावत के अनुसार, 2012 में अमेरिकी जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में मलेरिया के ट्रीटमेंट पर उनका शोध प्रकाशित हुआ था। इस दौरान क्लोरोकीन के पार्ट से दवा बनाने का विचार आया। शोध में खास प्रोटीन की पहचान की गई। उसी साल अमेरिका के मैकलीन अस्पताल के प्रो. किम ने पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए अणु विकसित करने में सहयोग के लिए संपर्क किया था।
न्यूरॉन एंजाइम को करता सक्रिय
टीम ने 600 से अधिक यौगिकों की जांच की, इसके बाद अणु कोड एटीए-199ए का चिकित्सकीय परीक्षण शुरू किया गया। दरअसल यह समस्या डोपामाइंस की कमी के कारण बनती है। पशुओं पर अध्ययनों से पता चला कि यह अणु न्यूरॉन एंजाइम को सक्रिय करता है। इससे डोपामाइन न्यूरॉन की मृत्यु रुक जाती है।
डिमेंशिया-अल्जाइमर की दवा भी परीक्षण स्तर पर
दिल्ली विवि और मैकलीन अस्पताल के बीच 2021 में करार हुआ था कि न्यूरॉन फार्मास्युटिकल्स इस अणु को विकसित करने में एक भागीदार के रूप में काम करेगा। प्रो. रावत के अनुसार, उनके नेतृत्व में हुए शोध के तहत ही आटो इम्यून डिजीज (स्व प्रतिरक्षी) व डिमेंशिया बीमारी की दवा खोज का कार्य भी प्री-क्लीनिकल लेवल पर चल रहा है।
मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं को होता नुकसान
आटो इम्यून डिजीज में जोड़, फेफड़े व आंखों की कोशिकाएं प्रभावित हो जाती हैं। डिमेंशिया बीमारी के उपचार के लिए भी अणु परीक्षण भी शुरू हो चुका है। इस बीमारी से मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान होता है। यही नहीं अल्जाइमर का परीक्षण भी अभी लैब स्तर पर शुरू हो रहा है।
पार्किंसंस रोग के लक्षण
- मांसपेशियों में कंपन और अकड़न
- संतुलन बनाए रखने में दिक्कत
- गतिविधियां धीमी होना
- सोचने में दिक्कत होना
- डिमेंशिया विकसित होना
- आंखें चौड़ी खुली रहना
- खाना खाने में दिक्कत