असिस्टेंट प्रोफेसरों को उत्तराखंड HC से झटका, कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका की खारिज

उत्तराखंड के सहायक प्राध्यापकों को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट उनकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है, जिससे सैकड़ों प्राध्यापकों का भविष्य दांव पर लग गया है।
हाईकोर्ट ने विनियमितीकरण नियमावली 2016 के आधार पर गुरुवार को विनियमित सहायक प्राध्यापक डॉ. आशुतोष बिक्रम और अन्य की पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया है। याचिकाओं के खारिज होने से लगभग पौने दो सौ सहायक प्राध्यापकों के विनियमितिकरण पर खतरा मंडराने लगा है।
मामले के अनुसार, उत्तराखंड शासन द्वारा वर्ष 2016 की विनियमितीकरण नियामवली के आधार लगभग 700 कार्मिकों को विनियमित किया गया, जिनमें उच्च शिक्षा विभाग के 176 सहायक प्राध्यापक भी शामिल थे।
हिमांशु जोशी एवं अन्य द्वारा विनियमितीकरण नियमावली 2016 को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने इस नियमावली को निरस्त कर दिया।
इसके पश्चात प्रदेश सरकार के कार्मिक विभाग द्वारा 07 जनवरी 2019 को संशोधित नियामवली 2018 तैयार की गई, जिसमें विनियमित कार्मिकों के पदों को रिक्त मानते हुए संगत सेवा नियमावली के आधार पर भरने के साथ-साथ 10 नंबर का वेटेज देने का प्रावधान किया गया।
संशोधित नियमावली को वर्ष 2016 नियामवली के तहत विनियमित डॉ. हेमा मेहरा एवं अन्य ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच द्वारा 15 फरवरी 2019 को पारित अपने निर्णय में संशोधित नियामवली 2018 को सही ठहराया गया। साथ ही वर्ष 2016 नियमावली के आधार पर विनियमित 176 सहायक प्राध्यापकों के विनियमितीकरण को खारिज कर दिया।
यही नहीं न्याय विभाग ने भी विनियमितीकरण को अवैध एवं शून्य बताते हुए इस पर अपनी मुहर लगा दी।
डॉ. आशुतोष बिक्रम एवं अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई जिसे कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनोज कुमार तिवारी एवं जस्टिस विवेक भारती शर्मा की बेंच द्वारा निरस्त कर दिया गया। इस मामले में विगत 25 नवंबर को सुनवाई हुई, लेकिन आदेश की कॉपी गुरुवार को मिल पाई।
याचिका के निरस्त होने से उच्च शिक्षा विभाग में वर्ष 2016 की नियमावली के आधार पर विनियमित कार्मिकों के भविष्य पर भी खतरे की तलवार लटक गई है।