ASI ने मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद का मांगा कंट्रोल और प्रबंधन, पढ़ें पुरी खबर…

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने संभल कोर्ट में लिखित बयान पेश कर मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद का कंट्रोल और प्रबंधन उसे देने की मांग की है। एएसआई ने कोर्ट में 29 नवंबर को कोर्ट में रखे अपने पक्ष में कहा है कि यह 1920 से एक संरक्षित हेरिटेज जगह है जिसे संभालकर रखना उसका काम है। शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर केस में पिछली सुनवाई के दौरान एएसआई की तरफ से केंद्र सरकार के वकील विष्णु शर्मा ने यह बयान कोर्ट को सौंपा। कोर्ट ने उस दिन मस्जिद की सर्वे के लिए 19 नवंबर को नियुक्त कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट पेशी की मियाद बढ़ा दी थी। हिन्दू पक्ष का दावा है कि 1529 में हरिहर मंदिर के ऊपर मस्जिद बनाई गई थी।
एएसआई के वकील विष्णु शर्मा ने कोर्ट से कहा कि उसे पहले मस्जिद का सर्वे करने में मस्जिद कमिटी और स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है। एएसआई ने 19 जनवरी, 2018 की एक प्राथमिकी की कॉपी भी अपने लिखित जवाब में शामिल किया है जो उस वक्त मस्जिद प्रबंधन समिति के खिलाफ दर्ज कराई गई थी। उस समय मस्जिद प्रबंधन ने बिना आधिकारिक इजाजत के मस्जिद की सीढ़ियों पर स्टील की रेलिंग लगवा दी थी। शर्मा ने कोर्ट से कहा है कि एएसआई के प्रावधानों के तहत मस्जिद में आम लोगों को जाने की इजाजत होनी चाहिए। शर्मा ने मस्जिद की संरचना में अनधिकृत बदलाव पर कोर्ट के सामने अपनी चिंता जाहिर की है और कहा है कि इसके नियंत्रण, प्रबंधन और रखरखाव का अधिकार एएसआई का है।
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शाही मस्जिद कमिटी के प्रमुख जफर अली ने माना है कि मस्जिद 1920 से एएसआई संरक्षित स्मारक है और इसमें किसी तरह के बदलाव या निर्माण कार्य के लिए एएसआई से इजाजत लेने की जरूरत है। एएसआई के द्वारा कोर्ट में दाखिल जवाब पर जफर अली ने कहा कि सीढ़ियों पर रेलिंग बहुत पहले लगवाई गई थी। उन्होंने कहा कि मौजूदा कमिटी छह साल से है और उन्हें नहीं पता कि ये रेलिंग कब लगवाई गई।
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हालांकि जफर अली ने स्पष्ट किया कि मस्जिद परिसर में एक कमरा और एक कुआं भी 100 साल से ऊपर पुराने हैं। उन्होंने बताया कि एएसआई ने 2018 में जो केस दर्ज कराया था, उसका ट्रायल चल रहा है। जब इस मुकदमे की अगली सुनवाई होगी तो मस्जिद कमिटी एएसआई के जवाब पर अपना पक्ष रखेगी।