लोकसभा चुनाव नतीजों ने उत्तराखंड में सभी दलों को दिया कड़ा सबक, पांचों सीटें में जीत-हार पर घटा अंतर
उत्तराखंड के चुनाव नतीजे सभी दलों के लिए सबक हैं। भाजपा ने 2019 की तरह राज्य की सभी पांच सीटें जीतीं, लेकिन जीत का अंतर घट गया। केवल नैनीताल ऊधमसिंहनगर सीट पर अजय भट्ट अपने पिछले रिकॉर्ड के करीब पहुंच सके। कांग्रेस हार का अंतर कम कर पाई, मगर एक भी सीट जीत नहीं सकी।
बसपा हरिद्वार में जमानत नहीं बचा पाई। यूकेडी नोटा की भी बराबरी नहीं कर सकी। पूरे प्रदेश में अकेले निर्दलीय दावेदार बॉबी पंवार न केवल जमानत बचाने में कामयाब रहे, बल्कि बेरोजगारों की लड़ाई लड़ने के कारण उनको 1.68 लाख से ज्यादा मतदाताओं का समर्थन मिला।
टिहरी सीट पर बॉबी को मिला वोट बताता है कि उत्तराखंड में जनता के लिए संघर्ष करने वालों की जगह खत्म नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव 2024 में भी उत्तराखंड में पांचों सीटें जीतने वाली भाजपा को वर्ष 2019 जैसी जीत नहीं मिलने के कई कारण हैं।
पहाड़ के आम नौजवान सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं। ज्यादातर लोगों को सेना में अग्निवीर जैसी अंशकालिक व्यवस्था पसंद नहीं आई। युवाओं के लिए बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा है। टिहरी लोकसभा क्षेत्र में बेरोजगार युवाओं ने बॉबी पंवार के रूप में अपना प्रतिनिधि नजर आया, ज्यादातर बेरोजगारों ने निर्दलीय होने के बावजूद उन्हें वोट किया।
हालांकि बॉबी को मिले समर्थन में मौजूदा सांसद से नाराज भाजपाइयों के वोट भी शामिल हैं। कुछ सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर नाराजगी से भी भाजपा के मत घटे। राज्य के ज्यादातर सांसद प्रदेश के लिए कोई बड़ा प्रोजेक्ट या रोजगार देने वाला कारखाना मंजूर कराने में नाकाम रहे।
दूसरी तरफ, कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूची जैसे ही सार्वजनिक हुई, उसमें हरीश रावत, यशपाल आर्य व प्रीतम सिंह के नाम नहीं देखकर लोगों को हैरानी हुई थी। अनुभवी और बड़े नेताओं के होते हुए नए चेहरों को मैदान में उतारे जाने से अंदाजा लगाया गया कि कांग्रेस ने चुनाव पूर्व हार मान ली है।
उसके बड़े नेता हार के डर से मैदान छोड़ चुके हैं। इन तीनों बड़े नेताओं को कांग्रेस ने उतारा होता तो नतीजे बदल सकते थे। कम से कम वे भाजपा के जीत के अंतर को न्यूनतम करने की ताकत रखते हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह भी रही कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के बावजूद उसने पिछले पांच साल में आम लोगों की शिक्षा, चिकित्सा, महंगाई जैसी समस्याओं या फिर बेरोजगारों के समर्थन में कोई यादगार आंदोलन नहीं किया।
बसपा ने पहले हरिद्वार से पहले भावना पांडेय को शामिल करके उन्हें टिकट देने का संकेत दिया, लेकिन कुछ दिन बाद यूपी से जमील अहमद को लाकर हरिद्वार में उतार दिया। स्थानीय उम्मीदवार नहीं होने का खामियाजा बसपा ने भुगता। जमील जमानत भी नहीं बचा पाए।
उत्तराखंड क्रांति दल कभी राज्य के लिए संघर्ष करने वाली क्षेत्रीय पार्टी मानी जाती थी, लेकिन अब उसने जनता के लिए संघर्ष करना छोड़ दिया। अलग राज्य बनने के बाद कभी कांग्रेस और कभी भाजपा की गोद में बैठने वाले दल के रूप में जानी जाने लगी। यह दल अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार बेरोजगारों की लड़ाई लड़कर जगह बना सकते हैं तो यूकेडी क्यों नहीं? इस चुनाव परिणाम से चाहे तो हर दल सबक ले सकता है।