कानून के मुताबिक केस डायरी मेंटेन नहीं रखने पर बॉम्बे HC ने पुलिस को लगाई फटकार, DGP को दिए निर्देश

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस स्टेशनों में कानून के मुताबिक केस डायरी मेंटेन नहीं रखने पर पुलिस को फटकार लगाई है। साथ ही महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को इस मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की खंडपीठ ने 16 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि उसे नियमित रूप से ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जहां कानून के अनुसार पुलिस द्वारा केस डायरी का रखरखाव नहीं किया जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

पीठ एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी उज्बेकिस्तान नागरिक पत्नी को अपनी एक महीने की बेटी को वापस लेने की मांग की थी। दरअसल, शख्स ने कोर्ट को सूचित किया था कि पत्नी और उसका परिवार बच्ची को भगा कर पंजाब के अमृतसर में एक दोस्त के आवास पर ले गए थे। इसके बाद याचिकाकर्ता की पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद में जमानत पर भी रिहा कर दिया गया।

क्या है धारा 41ए?

याचिकाकर्ता की पत्नी की ओर से पेश वकील पद्मा शेलटकर ने अदालत को सूचित किया कि गिरफ्तारी कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करके की गई थी और गिरफ्तारी से पहले आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 ए के तहत कोई नोटिस नहीं दिया गया था। धारा 41ए के तहत, पुलिस को पहले आरोपी व्यक्ति को नोटिस जारी कर बयान देने के लिए उपस्थित होने का निर्देश देना होता है और उसके बाद, अगर पुलिस उचित समझे, तो गिरफ्तारी की जाती है।

डीजीपी को दिए निर्देश

इसके बाद पीठ ने केस डायरी सहित पुलिस जांच दस्तावेजों का अवलोकन किया। पीठ ने कहा कि केस डायरी सीआरपीसी की धारा 172 (1-बी) की ‘पूरी तरह से अवहेलना’ में रखी गई थी। इसके मद्देनजर उच्च न्यायालय द्वारा कई आदेश पारित किए गए और महाराष्ट्र के डीजीपी द्वारा परिपत्र जारी किए गए, जिसमें जांच अधिकारियों को कानून के अनुसार सभी मामलों में केस डायरी बनाए रखने का निर्देश दिया गया।

इस तरह के निर्देश जारी करने में हो रही परेशानी

अदालत ने कहा, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि डीजीपी द्वारा जारी निर्देश निचले स्तर के पुलिस अधिकारियों तक नहीं पहुंचे हैं, जो जमीनी स्तर पर जांच कर रहे हैं और सर्कुलर पुलिस स्टेशनों की फाइलों में ही रह गई है।’ पीठ ने कहा कि इस तरह के निर्देश जारी करने में परेशानी हो रही है, लेकिन नियमित रूप से ऐसे उल्लंघनों का सामना हो रहा है। पीठ ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि डीजीपी सभी पुलिस अधिकारियों से राज्य में सर्वोच्च पुलिस प्राधिकरण द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने में गंभीरता बरतें और ऐसे निर्देशों को हल्के में और/या लापरवाही से न लें।’

अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी की इच्छा के अनुसार पालन करने और उल्लंघन न करने के निर्देश जारी किए गए हैं। अदालत ने कहा कि वह उम्मीद करती है कि डीजीपी कड़े उपचारात्मक उपाय अपनाएंगे। पीठ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा ‘यह एक गंभीर विषय है। केस डायरी (वर्तमान में) न केवल ढीली पड़ गई है, बल्कि ये पूरी तरह से बिखरी चुकी है।’

धारा 41ए के तहत किसको दिया जाता है नोटिस

अदालत ने डीजीपी को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने और संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ आवश्यक कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि वह यह जानकर भी हैरान है कि सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस आरोपी व्यक्ति (याचिकाकर्ता की पत्नी) को नहीं दिया गया और पंजाब में सह-अभियुक्त के एक रिश्तेदार को दिया गया था। पीठ ने कहा कि यह कानून के अनुरूप नहीं है और धारा 41ए के तहत नोटिस केवल आरोपी को ही दिया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि हम जांच पुलिस अधिकारी द्वारा अपनाए गए नोटिस की सेवा के ऐसे नए विचार को स्वीकार करने में असमर्थ हैं। यह संबंधित अधिकारी द्वारा धारा 41-ए का स्पष्ट उल्लंघन है और इस पर पुलिस विभाग के सर्वोच्च अधिकारी यानी महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक को गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि वह अनुपालन के लिये इस मामले पर 13 फरवरी को सुनवाई करेगी।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker