HUF की मुखिया हो सकती है महिला, दिल्ली HC का अहम फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक महिला हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) की ‘कर्ता’ (प्रमुख) हो सकती है। इस फैसले ने 2016 में एकल न्यायाधीश के उस ऐतिहासिक फैसले को बरकरार रखा, जिसने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 के अर्थ (मीनिंग) का विस्तार किया था, जो महिलाओं को विरासत के मामलों में पुरुषों के बराबर खड़ा करता है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की पीठ के लेटेस्ट फैसले में संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रूथ बेडर गिन्सबर्ग को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि ‘वास्तविक परिवर्तन, स्थायी परिवर्तन, एक समय में एक कदम से होता है।

हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में रेखांकित किया कि ‘न तो विधायिका और न ही पारंपरिक हिंदू कानून किसी भी तरह से एक महिला के कर्ता होने के अधिकार को सीमित करता है। साथ ही, सामाजिक धारणाएं विधायिका द्वारा स्पष्ट रूप से प्रदत्त अधिकारों को अस्वीकार करने का कारण नहीं हो सकतीं।’ संपत्ति में महिलाओं को समान अधिकार देने वाले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 के संशोधन का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा, ‘यह कहना कि एक महिला सहदायिक हो सकती है, लेकिन कर्ता नहीं, एक ऐसी व्याख्या होगी जो न केवल असंगत बल्कि संशोधन पेश करने के घोषित उद्देश्य के भी खिलाफ होगी।’

इसके साथ ही कोर्ट ने सुजाता नाम की महिला, जो परिवार के मुखिया की पोती थी, को कर्ता घोषित कर दिया। यह ध्यान में रखते हुए कि उनके सभी बेटों की मृत्यु हो चुकी थी। सुजाता को कर्ता घोषित करने का विरोध करने वाले पोतों के बीच विवाद खड़ा हो गया। अदालत ने कहा कि सुजाता की उम्मीदवारी का विरोध ‘असंख्य परिकल्पनाओं पर किया गया था जो यह बताती हैं कि एक महिला के लिए सामाजिक दृष्टिकोण से कर्ता बनना गलत क्यों होगा।’

एक पोते की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए, अदालत ने रेखांकित किया कि ‘कोई भी संस्कृति या प्रथा जो समाज में व्याप्त है, जब उसमें प्रणालीगत परिवर्तन किए जाते हैं तो उसे समाज द्वारा कुछ आशंकाओं और प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। लेकिन समय के साथ यह सामाजिक परिवर्तन का एक साधन बन जाता है।’ कोर्ट ने फैसले में कहा, ‘लोकप्रिय स्वीकृति का परीक्षण संवैधानिक संरक्षण की पवित्रता से प्रदत्त वैधानिक अधिकारों की अवहेलना करने का वैध आधार प्रस्तुत नहीं करता है।’ 

अदालत ने कहा कि यह दावा कि महिला कर्ता के पति का उसके पिता के परिवार के एचयूएफ की गतिविधियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण होगा, ‘केवल एक संकीर्ण मानसिकता है।’ पीठ ने यह भी कहा कि ऐतिहासिक रूप से पुरुष और महिलाएं समान रूप से पैदा हुए थे, लेकिन समय के साथ ‘सभ्यता की प्रगति और समाज के विभाजन के साथ, महिलाओं को लैंगिक भूमिकाओं के अनुसार सीमित कर दिया गया है, जो आगे चलकर दिखावा करने की प्रक्रिया में बदल गया है जिसने उन्हें समाज में काफी पीछे धकेल दिया है।’

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