कनाडा में खालिस्तान समर्थक गिरोहों के बीच मतभेद, ट्रूडो सरकार ने साधी चुप्पी
खालिस्तान के मुद्दे को लेकर भारत और कनाडा के बीच रिश्ते काफी तल्ख हो चुके हैं। कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तान का पक्ष लेते हुए खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत की भूमिका करार दिया है, जिसका भारत ने पुरजोर विरोध किया। वहीं कनाडा के अंदर ही खालिस्तान समर्थक गिरोहों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं। जिसके चलते गैंगवॉर जैसी घटनाएं कनाडा में आ हो गई हैं। इसी कड़ी में कुख्यात दविंदर बंबीहा गिरोह के सदस्य सुखदूल सिंह उर्फ सुक्खा दुनेके की हत्या कनाडा में कर दी गई।
लॉरेंस बिश्नोई गिरोह से संबंध रखने वाले ट्रांस-नेशनल गैंगस्टर गोल्डी बरार ने हत्या की जिम्मेदारी ली है। उसने सोशल मीडिया पोस्ट पर कहा, “उसे अपने पापों की कीमत चुकानी पड़ी। कोई छिपने के लिए दुनिया भर में भाग सकता है, लेकिन आखिरकार उसे अपने कर्मों की कीमत चुकानी ही पड़ेगी।” बता दें इसी गैंगस्टर गिरोह पर पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या का आरोप है।
डुनेके की हालिया हत्या प्रतिबंधित आतंकी संगठन खालिस्तान टाइगर फोर्स के स्वयंभू प्रमुख निज्जर की गोली मारकर हत्या से अलग नहीं थी। ऐसा बताया जा रहा है निज्जर और डुनेके की हत्या में कई समानताएं हैं। कथित तौर पर जून में कनाडा के सरे में एक गुरुद्वारे के पास निज्जर खालिस्तानी गिरोहों के बीच आपसी रंजिश का शिकार हो गया।
कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, 2016 के बाद पंजाब में सिखों, हिंदुओं और ईसाइयों की हत्याएं के पीछे कनाडा में बैठे निज्जर और उसके सहयोगियों की करतूत थीं। मगर कनाडाई एजेंसियों ने निज्जर और उसके दोस्तों में शामिल भगत सिंह बराड़, पैरी दुलाई, अर्श दल्ला, लकबीर के खिलाफ कभी कोई जांच शुरू नहीं की।
कानाडा में खालिस्तानी चरमपंथी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’, ‘राजनीतिक वकालत’ आदि जैसी धारणाओं की आड़ में लगभग 50 वर्षों से कनाडाई धरती से स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं। 1985 में खालिस्तानी चरमपंथियों द्वारा कनिष्क बम विस्फोट सबसे बड़े आतंकवादी हमलों में से एक था। 9/11 से पहले के वक्त में दुनिया का सबसे बड़ा विमान आतंकी हमला था। कनाडाई एजेंसियों के ढुलमुल रवैये के कारण तलविंदर सिंह परमार और उनके खालिस्तानी चरमपंथियों का समूह आजाद हो गया। वही तलविंदर सिंह परमार अब कनाडा में खालिस्तानियों का नायक बना हैं।