उत्तराखंड: टिहरी झील किनारे बसे गांवों में भूस्खलन का खौफ, मकानों और जमीन में पड़ी दरारें

 नई टिहरी, नई टिहरी में भी बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। 42 वर्ग किमी में फैली टिहरी झील का जलस्तर 816 मीटर तक पहुंच गया है। 830 मीटर तक झील भरने के बाद झील किनारे बसे कई गांवों में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। जिस कारण इन दिनों ग्रामीण लबालब झील के कारण डरे हैं। टिहरी बांध झील का जलस्तर 800 मीटर से ऊपर होने के बाद झील किनारे बसे गांवों की जमीन और मकानों में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।

वर्ष 2010 से झील प्रभावित ग्रामीणों ने विस्थापन की मांग को लेकर आंदोलन किया तो उसके बाद टीएचडीसी ने पिछले वर्ष से झील प्रभावित 415 परिवारों को नुकसान के एवज में प्रति परिवार 74 लाख रुपये देने की शुरुआत की। अभी तक 160 से ऊपर परिवारों को धनराशि दी जा चुकी है और अन्य परिवारों को धनराशि मिलने की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन अभी भी कुछ गांव झील के कारण भूस्खलन की मार झेल रहे हैं। लेकिन उन गांवों का सर्वे अभी तक नहीं हो पाया है।

इन गांवों का नहीं हुआ है सर्वे

झील प्रभावित ग्रामीण प्रदीप भट्ट ने बताया कि भल्ड गांव, नारगढ़, पिपोलाखास, भटकंडा , छोलगांव और पयालगांव में का सर्वे अभी तक नहीं किया गया है। जिस कारण मानसून के दौरान इन गांवों में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। ग्रामीणों के मकानों में दरारें पड़ी हैं। कई बार ग्रामीणों ने टीएचडीसी और प्रशासन को विस्थापन के संबंध में पत्र दिया है लेकिन अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है।

विस्थापन की प्रक्रिया जल्द शुरू करनी चाहिए

झील प्रभावित ग्रामीणों के अधिवक्ता शांति प्रसाद भट्ट ने बताया कि टीएचडीसी और पुनर्वास निदेशालय ने 415 परिवारों समपाश्र्विक क्षति के तहत मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की है। लेकिन अभी भी कई गांव झील के कारण प्रभावित है। अधिवक्ता शांति प्रसाद भट्ट ने कहा कि उन सभी गांवों का जल्द से जल्द सर्वे कराया जाना चाहिए और उनके विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए।

अधिशासी निदेशक ने कही ये बात

झील किनारे बसे गांवों के ग्रामीणों को मुआवजा दिया जा रहा है। कुछ गांवों में भूस्खलन की समस्या आई है। झील भरने के बाद चेतावनी बोर्ड लगाने के अलावा मुनादी की जाती है। संयुक्ति विशेषज्ञ समिति की संस्तुति के आधार पर प्रभावितों को मुआवजा दिया जाता है। एलपी जोशी, अधिशासी निदेशक टीएचडीसी भागीरथीपुरम

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