यूक्रेन ने खटखटा NATO का दरवाजा, जानिए कारण….

बीते एक साल से यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध चल रहा है। इस युद्ध का क्या अंजाम होगा कोई नहीं जानता है। रूस अपनी जिद पर अड़ा है कि वह यूक्रेन को तबाह करके ही मानेगा, वहीं यूक्रेन है कि रूस के सामने घुटने टेकने को राजी नहीं हो रहा। ऐसे में दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए बीच बचाव कई अलग-अलग देश मध्यस्थता कराने के लिए राजी हो रहे हैं लेकिन दोनों देश अपनी जिद पर अड़े हैं। यूक्रेन के लिए रूस के खिलाफ हुए देशों की तरफ से वित्तीय और सैन्य सहायता दी जा रही है। मगर ये देश यूक्रेन का नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) में शामिल होने का समर्थन नहीं करते हैं।

यूक्रेन ने पिछले साल रूस के आक्रमण के बाद नाटो में शामिल होने के अपने प्रयास तेज कर दिए लेकिन पश्चिमी सैन्य गठबंधन के सदस्य इस बात पर अपना अलग-अलग मत रखते हैं। कुछ का मानना है कि यह कदम तेजी से उठाया जाना चाहिए। पूर्वी यूरोपीय देश चाहते हैं कि जुलाई के मध्य में विनियस में नाटो शिखर सम्मेलन में यूक्रेन के लिए किसी प्रकार का रोडमैप पेश किया जाए। वहीं अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे पश्चिमी सदस्य किसी भी ऐसे कदम के प्रति फूंक-फूंक कर कदम रखने की सलाह दे रहे हैं। किसी देश को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन में आमंत्रित करने का निर्णय सर्वसम्मति से ही लिया जाएगा।

नाटो में शामिल होना क्यों है अहम

2008 में अपने बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन में नाटो इस बात पर सहमत हुआ कि यूक्रेन गठबंधन में शामिल होगा। लेकिन नाटो नेताओं ने अब तक उस दिशा में ठोस कदम उठाने से परहेज किया है। नाटो का सदस्य बनने से यूक्रेन वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 की छत्रछाया में आ जाएगा जिसमें कहा गया है कि एक सहयोगी पर हमला सभी सहयोगियों पर हमला माना जाता है। नाटो का पारस्परिक सहायता खंड गठबंधन के केंद्र में है, जिसका गठन 1949 में मित्र देशों के क्षेत्र पर सोवियत हमले के जोखिम का मुकाबला करने के प्राथमिक उद्देश्य से किया गया था।

नाटो में क्यों शामिल होना चाहता है यूक्रेन

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन अब ऐसा मानने लगा कि नाटो में शामिल होना ही रूस समर्थक अलगाववादियों से निपटने का एकमात्र उपाय है। आए दिनों दोनों देशों के बीच सीमा पर सैन्य झड़प हो रही है। जिसका फायदा उठाकर पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों द्वारा संघर्ष को तेज किये जाने की आशंका है। नाटो की तरफ यूक्रेन का रुख इस मसले के प्रति भी ज्यादा साफ हो जाता जब रूस ने उत्तरी और पूर्वी सीमाओं के साथ-साथ क्रीमिया प्रायद्वीप (वर्ष 2014 से रूस के कब्जे में) पर हजारों सैन्य कर्मियों की तैनाती की थी।

हालांकि, ऐसा कहा जाता है कि आग से आग नहीं बुझाई जा सकती है। ग्लोबल मामलों के जानकारों का कहना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो गया तो आने वाले कई वर्षों तक समस्याएं पैदा होती रहेगी। जानकारों ने इस बात की चेतावनी दी कि नाटो के इस युद्ध में सक्रिय होने जाने के बाद रूस अपने हितों और सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा। जिससे रूस के साथ सीमा साझा करने वाले देशों के लिए भी असहज स्थिति बन सकती है।

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