जानिए कब हैं कामदा एकादशी, महत्व और पूजा विधि
भगवान विष्णु को समर्पित कामदा एकादशी हिंदू संस्कृति में अपना एक विशेष स्थान रखती है। कामदा एकादशी का व्रत व्यक्ति की छुपी हुई कामनाओं की पूर्ति करता है। कामदा एकादशी चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। कामदा एकादशी चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष कामदा एकादशी शनिवार 1 अप्रैल 2023 को रहेगी। कामदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त सुबह 4:30 बजे से आरंभ होगा और समापन 2 अप्रैल सुबह 5:02 मिनट पर होगा। आइए जानते हैं इस व्रत को लेकर कुछ जरूरी बातें हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस शुभ तिथि पर व्रत रखकर भगवान नारायण की पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। पुराणों में बताया गया है कि जितना पुण्य कन्यादान, स्वर्ण दान और हजारों वर्षों की तपस्या से मिलता है, उससे अधिक पुण्य फल मात्र कामदा एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है।
विवाह में आ रही अड़चन और बाधा दूर होती है
कामदा एकादशी का व्रत विवाह में आने वाली परेशानियों को दूर करने वाला माना भी गया है। जिस किसी भी कन्या की शादी में अड़चने आ रही है। वह कन्या कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु को दो साबुत हल्दी की गांठें अर्पित करें, भगवान को ध्यान करते हुये हाथ जोड़कर अपने मन में अपनी परेशानियों को बोलकर प्रार्थना करें। ऐसा करने से कुवांरी कन्याओं के मनचाहे वर की कामना पूर्ण होती है।
कामदा एकादशी पर इस मंत्र का जाप करें
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
क्या है कामदा एकादशी का महत्व
विष्णु पुराण में बताया गया है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से उपासक को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को सर्व कार्य सिद्ध और मनोकामना पूरी करने के लिए बेहद उत्तम मानी जाती है। इस दिन भगवान हरि नारायण की विधिवत पूजा करने पर प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल जाती है और घर में कलेश व दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में सुख-शांति और संपन्नता आती है। इस व्रत के प्रभाव से उपासक की सभी बुरी आदत भी दूर हो जाती हैं।
कामदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में राजा दिलीप ने भी इस एकादशी के व्रत का माहात्म्य अपने गुरु वशिष्ठ से सुना था। गुरु ने उन्हें बताया था कि एक बार भोगीपुर नामक नगर में राजा पुंडरीक राज्य करते थे और उस राज्य में कई अप्सराएं, किन्नर, गंर्धव रहते थे। उसी राज्य में ललिता और ललित नाम के पति-पत्नी रहते थे और दोनों के बीच अत्यंत गहरा प्रेम था। एक दिन ललित राज दरबार में गान कर रहे थे तभी उनको अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई, जिससे सुर, लय और ताल बिगड़ने लगे। उनकी यह गलती राजा ने पकड़ ली। ललित ने राजा को पूरी बात बता दी, जिससे राजा क्रोधित हो गए और ललित को राक्षस बनने का शाप दे दिया। शाप की वजह से वह मनुष्य से राक्षस बन गया था। इससे ललिता को काफी दुख पहुंचा और वह श्रृंगी ऋषि के पास पहुंची। तब ऋषि ने कामदा एकादशी व्रत करने की सलाह दी। ललिता ने चैत्र एकादशी का व्रत रखकर भगवान नारायण से प्रार्थना की थी कि मेरे इस व्रत का फल मेरे पति को प्राप्त हो जाए। भगवान नारायण ने पत्नी के व्रत का फल उसके राक्षस बन चुके पति ललित को दे दिया जिससे वह राक्षस से एक बार फिर से मनुष्य बन गया। इस व्रत के विषय में यह भी कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से उपासक ब्रह्म हत्या जैसे पापों से और पिशाच योनि से भी मुक्त हो जाता है।
कामदा एकादशी व्रत पूजा विधि
कामदा एकादशी व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि से नियमों का पालन करना जरूरी है। एकादशी से एक दिन पहले ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करें। भगवान विष्णु का पंचामृत से स्नान करवाएं और फिर चंदन का तिलक लगाकर फूल अर्पित करें और प्रसाद लगाएं। इसके बाद कपूर व दीपक से भगवान विष्णु की आरती उतारें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। साथ ही एकादशी व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए। इसके बाद सायंकाल के समय भगवान विष्णु की आरती उतारें और रात के समय भजन कीर्तन करें तो अति शुभ होगा।