गंगा में प्रदूषण को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट टिप्पणी , जाने क्या कहा कोर्ट ने ?

प्रयागराज : गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में सुनवाई करते हुए जल निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य  विभागों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा विभाग अपनी जवाबदेही को शटलकॉक की तरह शिफ्ट कर रहे हैं. जल निगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं फिर भी वह पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है.सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी को सौंप दी है और स्वयं अक्षम अधिकारी के मार्फत निगरानी कर रहा है. कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई. कोर्ट ने महानिदेशक नेशनल मिशन क्लीन गंगा से उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है और पूछा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च किया है.

कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जांच रिपोर्ट मांगी है. बोर्ड ने एसटीपी की जांच के लिए 28 टीमें गठित की है. कोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से टेस्टिंग, शिकायत निस्तारण न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही पूछा कि गंगा जिन शहरों से होकर गुजरी हैं, वहां पर बने नालों को एसटीपी से जोड़ा गया या नहीं. नालों की स्थिति , डिस्चार्ज, ट्रीटमेंट व जल की गुणवत्ता को लेकर भी जानकारी मांगी है. एएसजीआई ने कोर्ट से विस्तृत जानकारी पेश करने के लिए समय मांगा. 26 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी. यह आदेश चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया.

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कहा- विभाग शटल कॉक की तरह जिम्मेदारी शिफ्ट कर रहे
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से अधिवक्ता बाल मुकुंद सिंह, भारत सरकार जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से एक एसजीआई शशि प्रकाश सिंह व राजेश त्रिपाठी, नगर निगम प्रयागराज के अधिवक्ता एसडी कौटिल्य ने पक्ष रखा. सुनवाई केदौरान गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने में आपसी तालमेल बनाकर काम न करने पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा कि मामले में विभाग अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का सही से जवाब देने की बजाय शॅटल कॉक की तरह एक-दूसरे के पाले में डाल रहे हैं. जबकि, हकीकत में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले हैं. कोर्ट ने उन शहरों के साइट प्लॉन को भी देखा जहां से गंगा गुजरी है.

74 नाले अभी भी गंगा में गिर रहे
कोर्ट को न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरूण कुमार गुप्ता ने बताया कि यूपी में गंगा 15 शहरों से गुजरती हैं. उसके लिए साइट प्लान की रिपोर्ट प्रमुख सचिव नमामि गंगे की ओर से दाखिल किया गया है. इन शहरों में 74 नाले हैं, जो गंगा में गिर रहे हैं. इस पर कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता नीरज तिवारी से पूछा कि इन शहरों की एसटीपी से शहरों के नालों को जोड़ा गया है या नहीं। इस पर न्यायमित्र  गुप्ता ने कहा कि प्रयागराज सहित अन्य जिलों में तकरीबन 58 से 60 फीसदी कनेक्ट किया गया है. बलिया, प्रतापगढ़ सहित तीन जिलों में एसटीपी नहीं बनी हैं. कानपुर की ट्रेनरियों को कहीं शिफ्ट नहीं किया गया. इतने पैसे खर्च करने के बावजूद गंगा की स्थिति जस की तस है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लॉट (एसटीपी) की मॉनिटरिंग भी सहीं तरीके से नहीं हो पा रही है. एसटीपी का संचालन निजी एजेंसी के जरिए कराया जा रहा है. लेकिन हालत यह है कि संचालित एसटीपी ओवरफ्लो है. निगमों के पास कोई पर्यावरण इंजीनियर नहीं है.

कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई
मामले की सुनवाई के दौरान नेशनल गंगा मिशन, जल निगम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की ओर से आदेश के बावजूद मामले में जवाब दाखिल न करने पर कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई. इन विभागों की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. इस पर कोर्ट ने कहा कि वह मामले को लटकाना नहीं चाहती है. कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एसटीपी से लिए गए 29 नमूनों की रिपोर्ट मांगी तो बताया गया कि अभी जांच रिपोर्ट नहीं आई है. कोर्ट ने प्रयागराज में होने वाले कुंभ, माघ मेला के दौरान गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था जानी तो बताया गया कि मोबाइल एसटीपी के जरिए जल का शुद्धिकरण किया जाता है. कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया. याची अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव और शैलेश सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रयागराज के सात स्थानों से जल की जांच कराई है, लेकिन सभी जांच फेल हो गए हैं. पानी सही नहीं है. उन्होंने कहा कि सभी एसटीपी को बंद कर देना चाहिए। कोर्ट ने प्रयागराज नगरनिगम के अधिवक्ता से एसटीपी से हो रहे शोधन की रिपोर्ट के बारे में पूछा. उन्होंने मामले में हलफनामे पर जवाब दाखिल करने को कहा है.

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