ड्रैगन के हमले पर सबक सिखाने के लिए ताइवान की ये है तैयारी
दिल्लीः ड्रैगन के हमले पर सबक सिखाने के लिए ताइवान की ये है तैयारी।
यह सवाल दुनिया भर में कई लोगों के मन में है कि अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान की यात्रा के बाद ताइवान जलडमरूमध्य में जो सबसे बड़ा संकट पैदा हो गया है, आखिर उसका अंजाम क्या होगा. चीन सेना के आकार और हथियारों दोनों में बहुत आगे दिखाई देता है, लेकिन ताइवान को भी भरोसा है कि वह चीनी हमले को जितना संभव हो उतना कठिन बना और लंबा खींच सकता है. इस तरह वह बीजिंग के मंसूबों को नाकाम करके अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का समर्थन मांगने के लिए पर्याप्त समय निकाल सकता है.
यूरोएशियनटाइम्स की एक खबर के मुताबिक ताइवान एक ऐसी युद्ध रणनीति को अपनाया है जिसे ‘साही की रणनीति’ (Porcupine Strategy) के रूप में जाना जाता है, जिसका उद्देश्य दुश्मन के लिए हमले को बहुत कठिन और महंगा बनाना है. इस रणनीति के तहत ताइवान ने एंटी-एयर, एंटी-टैंक और एंटी-शिप हथियारों और गोला-बारूद के बड़े भंडार को जमा कर लिया है. इसमें मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) और मोबाइल तटीय रक्षा क्रूज मिसाइल (सीडीसीएम) जैसे कम लागत वाले युद्धपोत शामिल हैं. जो चीन के महंगे नौसैनिक जहाजों और नौसैनिक उपकरणों को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं.
ताइवान के पास बहुत ज्यादा स्टील्थ फास्ट-अटैक एयर क्राफ्ट्स और मिनिएचर मिसाइल असॉल्ट बोट हैं, जो अपेक्षाकृत सस्ते लेकिन बहुत प्रभावी उपकरण हैं. ताइवान का प्रतिरोध समुद्र में माइन्स को बिछाने वाले जहाजों की तेजी पर भी बहुत निर्भर करता है, जो चीनी हमलावर नौसेना के लैंडिंग ऑपरेशन को भी जटिल बना सकते हैं. ताइवान की ये रणनीति बहरहाल इस विचार पर आधारित है कि चीन समुद्र से ही अपने सैनिकों और हथियारों की आपूर्ति करेगा. क्योंकि उसके विमानों के बेड़े की एयरलिफ्ट करने की क्षमता कमजोर है. और ताइवान चीन के इस समुद्री हमले को बहुत कठिन बना सकता है.