क्यों मनाई जाती है कूर्म द्वादशी ? समुद्र मंथन से जुड़ा है इसका रहस्य

हिंदू धर्म में कूर्म द्वादशी का विशेष आध्यात्मिक महत्व माना जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की स्मृति में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, यह तिथि भगवान विष्णु के दूसरे अवतार कूर्म यानी कछुए को समर्पित है। इस वर्ष कूर्म द्वादशी 31 दिसंबर को मनाई जाएगी।

कूर्म द्वादशी क्यों मनाई जाती है ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक समय दैत्यराज बलि ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवता अपनी शक्तियां खो चुके थे और तीनों लोकों में असुरों का प्रभाव बढ़ गया था। अपनी इस दुर्दशा से परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली। भगवान विष्णु ने देवताओं को उपाय बताया कि यदि वे समुद्र मंथन करके अमृत प्राप्त कर लें, तो उनकी खोई हुई शक्तियां वापस लौट सकती हैं लेकिन समस्या यह थी कि कमजोर हो चुके देवताओं के लिए समुद्र मंथन जैसा कठिन कार्य अकेले करना संभव नहीं था।

तब भगवान विष्णु की सलाह पर देवताओं ने दैत्यों से संपर्क किया और अमृत तथा अमरत्व का लालच देकर उन्हें समुद्र मंथन के लिए तैयार किया। प्रारंभ में दैत्य यह सोचकर हिचकिचाए कि वे स्वयं ही सारा लाभ उठा लेंगे, लेकिन अंततः समुद्र मंथन से मिलने वाले रत्नों और अमृत के आकर्षण में वे देवताओं के साथ सहयोग करने को मान गए।

इसके बाद देवता और दैत्य क्षीर सागर पहुंचे। समुद्र मंथन के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया। जैसे ही मंथन शुरू हुआ, पर्वत का भार संभालना कठिन हो गया और वह समुद्र में डूबने लगा।

तभी भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण किया और अपनी पीठ पर मंदराचल पर्वत को धारण कर लिया। भगवान के इस अद्भुत अवतार के कारण समुद्र मंथन सफल हो सका। मंथन के दौरान कई दिव्य वस्तुएं और अंततः अमृत प्रकट हुआ। अमृत का पान करने से देवताओं को फिर से उनकी शक्तियां प्राप्त हो गईं और असुरों पर विजय संभव हो सकी। इसी महान लीला की स्मृति में हर वर्ष कूर्म द्वादशी मनाई जाती है, जो हमें धैर्य, त्याग और धर्म की रक्षा का संदेश देती है।

कूर्म द्वादशी पूजा विधि

प्रातः काल का संकल्प
कूर्म द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर व्रत और पूजा का संकल्प लें।

प्रतिमा की स्थापना और अभिषेक
पूजा घर में एक साफ चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। यदि आपके पास धातु की कूर्म प्रतिमा है, तो उसे एक पात्र में रखें।
सबसे पहले गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद पंचामृत से स्नान कराएं। अंत में शुद्ध जल से स्नान कराकर उन्हें पीले वस्त्र और चन्दन अर्पित करें।

भगवान को पीले फूल, अक्षत और धूप-दीप अर्पित करें। भगवान विष्णु के कूर्म रूप का ध्यान करते हुए उन्हें तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं, क्योंकि इसके बिना विष्णु पूजा अधूरी मानी जाती है।

भगवान को मौसमी फलों और मिठाई का भोग लगाएं। भोग लगाते समय ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें। इसके बाद विष्णु जी की आरती करें और परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद वितरित करें।

कूर्म द्वादशी के दिन दान का विशेष महत्व है। पूजा के पश्चात ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं और उन्हें वस्त्र, अन्न या तिल का दान दें। माना जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है।

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