राजस्थान में क्रॉस वोटिंग को लेकर भाजपा ने आत्मनिरीक्षण शुरू किया, हुई थी बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार की हार

दिल्लीः राजस्थान में राज्यसभा की चार में से दो सीटें जीतने की अपनी रणनीति के विफल होने पर भाजपा ने आत्मनिरीक्षण शुरू कर दिया है। बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था। वहीं पार्टी के एक विधायक ने कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया था। राज्य में हफ्तेभर चला ड्रामा 10 जून की देर शाम को खत्म हुआ,  जिसमें सत्तारूढ़ कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं और बीजेपी को अपने आधिकारिक उम्मीदवार घनश्याम तिवारी की जीत से ही संतोष करना पड़ा।

विपक्ष को भारी शर्मिंदगी का सामना सिर्फ इस वजह से नहीं करना पड़ा कि उन्होंने दूसरी सीट जीतने के लंबे-चौड़े दावे किए थे बल्कि पार्टी विधायक शोभरानी कुशवाह की क्रॉस वोटिंग करके पार्टी के प्रति अपनी नाराजगी जताई थी। त्वरित कार्रवाई करते हुए पार्टी ने बागी विधायक को अपनी प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है और उन्हें नोटिस जारी किया है।

चुनाव से पहले निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा दावा कर रहे थे कि कांग्रेस के आठ विधायक उनके पक्ष में वोट देंगे। यहां तक कि बीजेपी के नेता भी दो सीटें जीतने के बयान दे रहे थे। हालांकि चुनावों के बाद पार्टी के सुर बदल गए। मतदान के बाद विधानसभा से रवाना होते हुए नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने कहा, ‘हम दो सीटें कैसे जीत सकते थे जब हमारे पास सिर्फ एक सीट जीतने का ही बहुमत था? हमने कुछ नहीं खोया है।’
  
उन्होंने कहा कि निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन देने के पार्टी के फैसले के पीछे गहलोत सरकार को बेनकाब करना था। उन्होंने विधायकों की किलेबंदी की और उन्हें बहकाया था। हालांकि, बीजेपी के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा कि यदि एक महीने पहले उम्मीदवार का चयन हो जाता तो परिणाम बदल सकते थे। देर से घोषणा होने से सत्तारूढ़ सरकार को बढ़त हासिल हुई। ऐसा नहीं है कि हमरे पास संख्याबल नहीं था। कुछ ऐसे विधायक थे जो संपर्क में थे लेकिन कुछ प्रतिबद्धता चाहते थे और अन्य लोग अपना नाम उजागर नहीं करना चाहते थे।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और हरियाणा में जो हुआ वह काफी अलग है। वहां अंतर इतना बड़ा नहीं था। यहां राजस्थान में आरएलपी के समर्थन के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के पास आठ वोट कम थे। अन्य कारण नेतृत्व था, जो विधायक समर्थन करने की सोच रहे था वे अगले चुनावों में टिकट की प्रतिबद्धता मांग रहे थे, जोकि संभव नहीं था। जबकि कांग्रेस में सबकुछ अशोक गहलोत के हाथ में है। उनका मानना था कि नतीजों से भविष्य में पार्टी की संभावनाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि यहां विधायक जनता का चुनाव नहीं करते है।

पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि इस तरह के परिणाम का कारण पार्टी के भीतर समन्वय की कमी और उम्मीदवार पर देर से निर्णय है। उन्होंने कहा, ‘दावा किया गया था कि 5-7 विधायक संपर्क में हैं, लेकिन हमारी तरफ से एक ने धोखा दे दिया।’ उनका मानना था कि हर जीत से मनोबल बढ़ता है और इस बार यह खुशी कांग्रेस का है। बता दें कि कांग्रेस उम्मीदवार मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी को 42, 43 और 41 वोटों से जीत हासिल की। जबकि बीजेपी के घनश्याम तिवारी को 43 वोटों से जीत मिली। वहीं राज्यसभा सांसद बनने के लिए सुभाष चंद्रा को 41 वोटों की जरूरत थी। उन्हें बीजेपी का समर्थन मिला हुआ था लेकिन वे 30 वोटों से हार गए।

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