स्वयं में लाएं आध्यात्मिक चेतना

अपने मन की सहायता से परम पुरुष तक पहुंचने में आप असमर्थ हैं। आपके मन को बार-बार निराश होकर वापस आना पड़ेगा, अगर वह उन तक पहुंचने की कोशिश करता है, क्योंकि वह आपकी कल्पना शक्ति की पहुंच से बाहर है। आप किसी भी सामान्य ज्ञान के माध्यम से उस तक नहीं पहुंच सकते।

ब्रह्म की प्राप्ति मन से नहीं हो सकती और न ही वाणी से संभव है। ब्रह्म आनंद में स्थापना के साथ मन, बुद्धि, शब्द – सब खो जाते हैं, क्योंकि वह स्वयं एक ही सुख है- परम आनंद। अपनी चेतना की प्रफुल्लित शक्ति के माध्यम से व्यक्ति को उसमें स्थापित होना होता है।

उनके पास पहुंचने के बाद, मन के न होने के कारण, छह शत्रु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान और ईर्ष्या) भी नहीं रह सकते। साधक तब सभी भयों से मुक्त हो जाता है। सर्वोच्च चेतना अदृश्य है।

कोई अपने अंगों के माध्यम से अत्यंत विशाल और अत्यंत सूक्ष्म चीज को नहीं समझ सकता है। उन्हें देखने या समझने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों की मदद लेनी पड़ती है।

इसी तरह सर्वोच्च चेतना दिखाई नहीं देती (हालांकि, वह अदृश्य नहीं है) अर्थात उसे देखने के लिए कष्ट उठाना पड़ता है। जैसे अणुओं और परमाणुओं को देखने के लिए बौद्धिक और वैज्ञानिक दृष्टि आवश्यक है, वैसे ही परम ब्रह्म को देखने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि आवश्यक है।

वह आध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राप्त होता है। इसलिए उन्हें प्राप्त करने के लिए आपको उपवास करना होगा, जिसका अर्थ है पूजा। वह गहरा है।

सतही भाव या विचार से आपके लिए उसे जानना असंभव है। उसे जानने के लिए तुम्हें गहरे भीतर जाना होगा- आत्मनिरीक्षण करना होगा। बाहरी दृष्टि नहीं चलेगी।

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