1964 के संविधान के रास्ते पर चलेगा तालिबान?
तालिबान ने कहा है कि वह अफगानिस्तान में 1964 के संविधान के प्रावधानों को अस्थायी रूप से लागू करने की योजना पर काम कर रहे हैं। तालिबान के मुताबिक ये नियम-कानून इस्लामी कानून या शरिया के विरोध में नहीं हैं।
तालिबान ने यह भी बताया है कि एक नए संविधान का मसौदा तैयार किया जा रहा है जिसे 2022 तक पूरा कर लिया जाएगा। तालिबान ने अब तक ऐसा कुछ नहीं बताया है जिससे कि पता चल सके कि अफगानिस्तान में किस तरह का शासन रहने वाला है।
अब पहली बार तालिबान ने 1964 के संविधान की बात की है तो आइए जानते हैं कि 1964 का संविधान क्या है?
एक राष्ट्र के तौर पर अफगानिस्तान ने 4 संविधान देखे हैं। 1747, 1890, 1923 और 1964 का संविधान। 1964 के संविधान का उद्देश्य अफगानिस्तान को एक लोकतांत्रिक देश में बदलना और सामाजिक-आर्थिक आधुनिकीकरण को उत्प्रेरित करना था।
संविधान के सबसे उल्लेखनीय तत्वों में से कुछ संसद के दो सदनों का निर्माण था, जिनमें से निचले सदन को मताधिकार के माध्यम से चुना जाना था।
इसने यह भी स्थापित किया कि संसद द्वारा बनाए गए कानून शरिया कानून का स्थान लेंगे। आइए इस संविधान की कुछ खास बातें जानते हैं।
#1 गैर-मुस्लिम नागरिक सार्वजनिक शालीनता और सार्वजनिक शांति के लिए कानून द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर अपने कर्मकांड को करने के लिए आजाद होंगे।
#2 राजा जवाबदेह नहीं है और सभी लोगों द्वारा राजा का सम्मान किया जाएगा। राजा के त्याग या मृत्यु होने की स्थिति में सत्ता उसके बड़े बेटे के पास जाएगा।
यदि राजा के बड़े बेटे संबंधित निर्धारित योग्यताओं का अभाव है, तो सत्ता उसके दूसरे पुत्र को सौंप दिया जाएगा। और यह क्रम इसी तरह बढ़ती रहेगी। (मौजूदा वक्त में राजा से मतलब कार्यवाहक पीएम हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा से रहने की संभावना है।)