नर-नारायण सेवा

मां काली के अनन्य भक्त ब्रह्मनिष्ठ स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। एक बार परमहंस जी के परमप्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु से प्रार्थना की कि गुरुवर! यहां मायावी दुनिया में मेरा विरक्ति भाव बाधित होता है, इसलिए मैं हिमालय पर जाकर एकांत में साधना करना चाहता हूं।

कृपया अनुमति दीजिए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपने शिष्य से कहा-देखो विवेकानंद! हमारे इर्दगिर्द बहुत से लोग भूख से तड़प रहे हैं। गरीबी के कारण बीमार लोगों को औषधियां नहीं मिल पाती। इतनी सामाजिक असमानता है। चारों तरफ अज्ञान का अंधेरा छाया है। यहां समाज में लोग परेशान रहें और तुम हिमालय की किसी गुफा में समाधि के आनंद में लीन रहो।

क्या यह न्यायसंगत है? अपने गुरु की यह बात सुनकर स्वामी विवेकानंद ने हिमालय जाने का विचार त्याग दिया और समाज के गरीब, असहाय, निशक्तजनों के दुःख निवारण में लग गए। इस प्रकार स्वामी जी ने नर सेवा-नारायण सेवा को मूल मंत्र मानकर गरीबों, असहाय लोगों की निःस्वार्थ भाव से सेवा करने के लिए अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker