सहजता व विनम्रता
एक बार मार्टिन लूथर किंग सभा को सम्बोधित कर रहे थे। हजारों की भीड़ जुटी थी। भीड़ में कुछ विरोधी पक्ष के श्रोता भी थे। अचानक किसी ने उनके ऊपर एक जूता उछाल दिया। जूते को देख कर मंच व सभा में खलबली मच गयी।
लेकिन मार्टिन लूथर किंग नितान्त सहज व अविचलित खड़े रहे। उन्होंने बड़े प्यार से वह जूता उठाया और बोले, ‘धन्य है वह देश, जिसके वासी अपने खिदमतगारों का इतना ख़याल रखते हैं। किन्ही कृपालु सज्जन ने सचमुच पैदल चलने वाले मुझ तुच्छ-से सेवक पर बड़ी उदारता का परिचय दिया है, किंतु खेद है यह जूता केवल एक पांव का है।
थोड़ा रुककर फिर बोले, ‘कृपालु सज्जन से मेरा विनम्र आग्रह है कि कृपया वे मुझे दूसरा जूता भी दें। ऐसा करके वे सचमुच मुझे उपकृत करेंगे।’ लूथर किंग के मुंह से ऐसी बात सुनककर सभी स्तब्ध रह गए। थोड़ी देर बाद मार्टिन लूथर किंग के जयघोष से पूरा आसमान गूंज उठा। लूथर किंग के चेहरे पर चिर-परिचित सहज मुस्कान उभर आयी।