प्रकृति पूजा करने भोजली उत्सव की परंपरा
रायपुर : धरती माता और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए श्रावण पूर्णिमा पर भोजली उत्सव मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
हर साल रक्षाबंधन के दिन गोंडी समाज के लोग राजधानी के टिकरापारा के गोंडवाना भवन में भव्य आयोजन करते रहे हैं। भवन से भोजली यात्रा निकालकर बूढ़ा तालाब में स्नान करने के लिए ले जाया जाता है।
इस साल कोरोना महामारी के नियमों के चलते भोजली यात्रा नहीं निकाली जाएगी। सरोवर स्नान की परंपरा भवन में ही निभाई जाएगी।
गोंडी धर्म संस्कृति संरक्षण समिति छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष चंद्रभान नेताम ने बताया कि जल, वायु, अन्न के बिना जीवन संभव नहीं है। प्रकृति पर ही हम सभी का जीवन निर्भर है।
आदिवासी संस्कृति में हजारों साल से प्रकृति का आभार जताया जाता है। श्रावण माह की अष्टमी तिथि पर घर-घर में भोजली बाेने की परंपरा निभाते हैं।
आठ दिन बाद रक्षा बंधन पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लोक गीत गाकर नृत्य करके मनोरंजन भी किया जाता है।