सेनानी की दृष्टि

कालापानी की जेल में वीर सावरकर आदि के साथ घोर यातनाएं सहने के बाद महान इतिहासकार भाई परमानंद जी लाहौर लौटे तो बहुत दुबले-पतले हो चुके थे। चिकित्सक के परामर्श पर वे कुछ दिन के लिए श्रीनगर गए। भाई जी आर्यसमाजी थे। कश्मीर के महाराजा प्रताप सिंह उनकी ख्याति से सुपरिचित थे।

वे सनातन धर्म सभा के संरक्षक थे। महाराजा ने भाई जी को सनातन धर्म सभा के महोत्सव में आमंत्रित किया। भाई जी समारोह में पधारे तथा उनका विद्वतापूर्ण व्याख्यान सुनकर महाराजा गद‍्गद हो उठे। महाराजा प्रताप सिंह ने मंच पर ही उनकी प्रशंसा करते हुए कह दिया कि राज्य की जनता मातृभूमि के लिए कालापानी में कष्ट उठाने वाले महान क्रांतिकारी के दर्शन से धन्य हो गई है।

उसी शाम कश्मीर के अंग्रेज गवर्नर ने महाराजा को फोन कर ब्रिटिश शासन के एक जाने-माने विद्रोही का अभिनन्दन किए जाने पर नाराजगी जता दी। भाई जी को दूसरे दिन जब इस बात का पता चला तो उन्होंने एक पत्र महाराज के पास भेजा, जिसमें उनके कारण महाराजा के अपमान पर दुःख व्यक्त किया गया था तथा लिखा कि वे कश्मीर छोड़कर लाहौर लौट रहे हैं। महाराजा ने जैसे ही पत्र पढ़ा कि भाई जी की महानता की अनुभूति कर उनकी आंखें नम हो गईं।         

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