प्रसन्नता का रहस्य
एक सेठ सुविधा सम्पन्न होते हुए भी बहुत दुखी था। घर में रहता तो पत्नी व बच्चों पर क्रोधित होता, दुकान पर आता तो कर्मचारियों पर चिल्लाता रहता। इस कारण उसे कोई भी पसन्द नहीं करता था। वह जीवन से निराश रहने लगा।
एक दिन उसने अपनी दुकान में लकड़ी का काम करने के लिए एक व्यक्ति को बुलाया। कामगार ने आते ही दुकान से बाहर एक झोला रखा और अपने औज़ार इत्यादि लेकर काम पर लग गया।
उसने सारा दिन मन लगा कर काम किया और शाम को ख़ुशी-ख़ुशी अपना वेतन लेकर घर चला गया। तीन दिन तक यही क्रम चलता रहा तो सेठ जी उसकी प्रसन्नता का रहस्य जानने हेतु उसका पीछा करते हुए उसके घर तक पहुंच गए। साधारण से घर में एक झोला बाहर टांग कर प्रवेश करते देख सेठ जी ने उससे पूछ ही लिया कि इस झोले में क्या है जो तुम सदैव इसे बाहर ही रखते हो? ‘इसमें मेरी परेशानियां हैं।
जब मैं काम पर जाता हूं तो घर की परेशानियां बाहर रख देता हूं और घर आने पर काम की; इसलिए मैं सदैव प्रसन्न रहता हूं।’ उसने उत्तर दिया। सेठ जी उसके आगे नतमस्तक थे।