उदारता का पाठ

एक बार युवक सुभाष चंद्र बोस अपनी प्रतियोगी परीक्षा के दौरान कुछ घंटे के अंतराल में, वहीं किसी गली के एक छोटे से रेस्तरां में नाश्ता करने गये थे। उनके पास ही एक बुजुर्ग चाय पी रहा था।

चाय पीने के बाद वो बुजुर्ग चाय वाले से बोला, ‘दो पैसे की चाय है पर कीमत नहीं चुका सकता क्योंकि मेरी जेब फट गई और पैसे गिर गये।’ रेस्तरां मालिक ने बात मान ली और वह बूढ़ा चला गया। सुभाष यह सब बहुत उत्सुकता से देख रहे थे। तभी एक वेटर ने कहा, ‘अरे, मालिक यह वृद्ध तो न जाने कितनी बार यही बहाना बनाकर एक कप चाय सुड़क जाता है।

’ ‘हां जानता हूं, मगर सिर्फ एक कप चाय, न समोसा न जलेबी न इमरती। मैं इसको हमेशा देखता हूं बस दो पैसे की चाय पीता है। अगर वह लालची नहीं है तो मैं भी उदार हूं।’ यह बात सुभाष चंद्र बोस के दिल में उतर गई। परसेवा, परहित के पाठ युवक सुभाष ने पढ़ाई के दौरान ऐसे ही सीखे थे।

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