अहिंसा
कलिंग का युद्ध जीतने के पश्चात सम्राट अशोक अभिमान में चूर होकर रणभूमि में अट्टहास कर रहे थे, ‘मैं विजेता हूं, मैंने कलिंग और कलिंग नरेश का घमंड चूर-चूर कर दिया है।
मुझसे प्रश्न करने या मेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए अब कलिंग में कोई भी अभिमानी अब जीवित नहीं रहा।’ अचानक सामने से एक लड़की दौड़ी हुई आई और बोली, ‘आप भूल रहे है सम्राट! अभी मैं जीवित हूं।
’ सम्राट अशोक ने पूछा, ‘कौन हो तुम और इस भयंकर युद्ध क्षेत्र में अकेली क्यों घूम रही हो?’ लड़की बोली, ‘मैं कलिंग नरेश की अभागिन पुत्री हूं और आपकी विजय पर यह उपहार आपको भेंट करने आयी हूं।’ यह कहकर लड़की ने सोने का थाल आगे कर दिया।
सम्राट ने जैसे ही थाली से कपड़ा हटाया तो अवाक रह गया और थाली उसके हाथ से छूट गयी। थाली में एक दुधमुंहे शिशु का शव था। उन्हें अपनी भूल और युद्ध के भयंकर परिणाम का आभास हो गया। लड़की के इसी उपहास से लज्जित होकर सम्राट अशोक अहिंसा का पुजारी बन गया।