एकाग्रता में बाधा

एक शिष्य अधीर हो कर गुरु के पास आया और बोला कि मेरा मन ध्यान करने में बिल्कुल नहीं लगता। आप बताइए कि मन कैसे ध्यान में स्थिर हो? गुरु जी बोले कि यहां ध्यान नहीं लगेगा, कहीं और चलते हैं।

यह कहकर गुरु जी शिष्य को लेकर चले तो देखा कि शिष्य के पास एक झोला है, जिसे बड़े जतन से वह पकड़े हुए है। रास्ते में शिष्य को प्यास लगी तो वह झोले को बड़ी सावधानी से रखकर पानी पीने चला गया।

लौटकर जब झोला खोलकर देखा तो गुरुजी से बोला, ‘गुरुदेव! मेरे झोले में चांदी का सिक्का था, वह दिखाई नहीं दे रहा है।’ गुरु बोले, ‘मैंने उस सिक्के को कुएं में फेंक दिया है और अब तुम्हें ध्यान लगाने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

’ शिष्य को अपने भटकाव का कारण ज्ञात हो गया और वह गुरु के साथ आश्रम लौट आया।

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