सात चिरंजीवी देवों में से एक हैं परशुराम

भगवान परशुराम का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। इन्हें विष्णु जी का छठा अवतार माना जाता है। मान्यता है कि विष्णु के छठे अवतार परशुराम के जन्म का उद्देश्य धरती पर अत्याचारी राजवंशों को समाप्त करना था।

इसीलिए हिंदू मान्यताओं के अनुसार सात चिरंजीवी देवों में से एक परशुराम आज भी पृथ्वी पर ही हैं। यही कारण है कि अवतार होते हुए भी उन्हें राम या श्रीकृष्ण की तरह नहीं पूजा जाता है।

हालांकि दक्षिण भारत के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में भगवान परशुराम के कई प्रसिद्ध मंदिर है। कल्कि पुराण के अनुसार अभी भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि का होना शेष है, जिनके युद्ध कला के गुरु होंगे भगवान परशुराम।

हिंदू पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान परशुराम ने ही सहस्त्रार्जुन जैसे घमंड में भरे राजा का वध किया था। कहा जाता है कि महर्षि जमदाग्नि के चार पुत्र थे। उनमें से परशुराम चौथे थे।

जन्म के समय परशुराम  का नाम राम था किंतु जब उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें तरह-तरह के अस्त्र भेंट किए, तो उनका परशु यानी फरसा राम को बहुत प्रिय हुआ और अंतत: यह उनके नाम के साथ जुड़ गया, जिसके फलस्वरूप ये परशुराम कहलाए।

उल्लेख मिलता है कि भारत के अधिकांश गांव परशुराम ने बसाए थे। उनके क्रोध से सभी डरते थे, तभी एक पौराणिक कथा के अनुसार उन्होंने तीर चलाकर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे जाने पर भी मजबूर किया  और नई भूमि का निर्माण किया। परशुराम जयंती पर व्रत की परंपरा है।

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