अहंकार मुक्त सेवा
कबीर के पास कुछ धनीजनों का समूह बैठा हुआ था। सभी कबीर की बात मानकर वहीं सोना-चांदी दान कर जरूरतमंदों की मदद कर रहे थे और अपनी दौलत के अहंकार में फूले नहीं समा रहे थे। तभी एक अवसादग्रस्त युवक, जो कि उदासी में भरा था, वहां आया।
उसका मन सामान्य करने के लिए कबीर ने वहां बैठे एक फकीर से कुछ गाने को कहा। उस फकीर के सुर छेड़ते ही युवक का मन उमंग से भर गया और निराशा से मन हटकर वहां बातचीत में लग गया।
यह परिवर्तन देखकर कबीर ने उस फकीर की खुलकर तारीफ की जो सोना-चांदी दान करने वालों को बहुत चुभ गई। अब कबीर ने उनको समझाया कि अपनी अमीरी से दूसरे को तुच्छ समझने की सोच के साथ चाहे कोई कितनी सफलता पा ले, लेकिन वहां से वह रिक्त ही लौटेगा।
कारण कि उसके विचारों में तो अहंकार का कचरा है। दूसरे के गुण स्वीकार करने की गंुजाइश ही नहीं है। अभिमान में फूलना अपने को भूलना है। तुच्छ अहंकार न दूसरों से कुछ सीख सकता है न ही कहीं सामंजस्य कर सकता है।