लोन मोरेटोरियम मामले सुप्रीम कोर्ट ने दिया यह बड़ा निर्देश

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार को लोन मोराटोरियम पॉलिसी में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने ब्याज पर ब्याज मामले पर निर्देश दिया कि मार्च से अगस्त 2020 छह महीने की लोन मोनाटोरियम अवधि के लिए उधारकर्ताओं से कोई चक्रवृद्धि या दंडत्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा और यदि पहले ही कोई राशि ली जा चुकी है, तो उसे वापस जमा या समायोजित किया जाएगा।

अदालत ने ट्रेडर एसोसिएशन और अपील करने वाले लोगों की लोन मोराटोरियम की अवधि में ब्याज माफ करने की अपील को ठुकराने के साथ मोराटोरियम अवधि बढ़ाने से भी मना कर दिया क्योंकि इस फैसले का असर डिपोजिटर्स पर भी पड़ेगा। 2 करोड़ तक के कर्ज पर चक्रवृद्धि ब्याज और साधारण ब्याज के बीच अंतर वसूला गया था। शीर्ष न्यायालय ने 31 अगस्त 2020 से आगे लोन मोराटोरियम का विस्तार नहीं करने के केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है। कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर पिछले साल लोन मोराटोरियम की घोषणा की गई थी।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय केंद्र की राजकोषीय नीति संबंधी फैसले की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता है, जब तक कि यह दुर्भावनापूर्ण और मनमाना न हो। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह पूरे देश को प्रभावित करने वाली महामारी के दौरान राहत देने के संबंध में प्राथमिकताओं को तय करने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।

पीठ ने रियल एस्टेट और बिजली क्षेत्रों के विभिन्न उद्योग संगठनों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर अपने फैसले में यह बात कही। इन याचिकाओं में महामारी को देखते हुए लोन मोनाटोरियम की अवधि और अन्य राहत उपायों को बढ़ाने की मांग की गई थी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह केन्द्र के राजकोषीय नीतिगत निर्णयों की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि यह गलत या मनमाने ढंग से ना बनाई गई हो। लोन मोराटोरियम केस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को आर्थिक फैसले लेने का अधिकार है क्योंकि महामारी के चलते सरकार को भी आर्थिक नुकसान हुआ है।

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